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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
चन्द्रग्रहण और अशुभ स्वप्न के फल को निवारण करने के लिए विविध मंत्रादि से संस्कारित जल से स्नान और शान्तिकर्म करो । अपने कुटुम्बीजनों की अथवा अपने जीवन की रक्षा के लिए कृत्रिम प्रतिशीर्षक चण्डी आदि देवियों की भेंट चढ़ाओ । अनेक प्रकार की ओषधियों, मद्य, मांस, मिष्ठान्न, अन्न, पान, पुष्पमाला, चन्दन-लेपन, उबटन, दीपक, सुगन्धित धूप, पुष्पों तथा फलों से परिपूर्ण विधिपूर्वक बकरा आदि पशुओं के सिरों की बलि दो । विविध प्रकार की हिंसा करके उत्पात, प्रकृतिविकार, दुःस्वप्न, अपशकुन, क्रूरग्रहो के प्रकोप, अमंगल सूचक अंगस्फुरण आदि के फल को नष्ट करने के लिए प्रायश्चित्त करो । अमुक की आजीविका नष्ट कर दो । किसी को कुछ भी दान मत दो । वह मारा गया, यह अच्छा हुआ । उसे काट डाला गया, यह ठीक हुआ । उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले गये, यह अच्छा हुआ । इस प्रकार किसी के न पूछने पर भी आदेश-उपदेश अथवा कथन करते हुए, मन-वचन-काय से मिथ्या आचरण करने वाले अनार्य, अकुशल, मिथ्यामतों का अनुसरण करने वाले मिथ्या भाषण करते हैं । ऐसे मिथ्याधर्म में निरत लोग मिथ्या कथाओं में रमण करते हुए, नाना प्रकार से असत्य का सेवन करते सन्तोष का अनुभव करते हैं ।
[१२] पूर्वोक्त मिथ्याभाषण के फल-विपाक से अनजान वे मृषावादी जन नरक और तिर्यञ्च योनि की वृद्धि करते हैं, जो अत्यन्त भयंकर हैं, जिनमें विश्रामरहित वेदना भुगतनी पड़ती है और जो दीर्घकाल तक बहुत दुःखों से परिपूर्ण हैं । वे मृषावाद में निरत नर भयंकर पुनर्भव के अन्धकार में भटकते हैं । उस पुनर्भव में भी दुर्गति प्राप्त करते हैं, जिनका अन्त बड़ी कठिनाई से होता है । वे मृषावादी मनुष्य पुनर्भव में भी पराधीन होकर जीवन यापन करते हैं । वे अर्थ और भोगों से परिवर्जित होते हैं । वे दुःखी रहते हैं । उनकी चमड़ी बिवाई, दाद, खुजली आदि से फटी रहती है, वे भयानक दिखाई देते हैं और विवर्ण होते हैं । कठोर स्पर्श वाले, रतिविहीन, मलीन एवं सारहीन शरीर वाले होते हैं । शोभाकान्ति से रहित होते हैं। वे अस्पष्ट और विफल वाणी वाले होते हैं । वे संस्काररहित और सत्कार से रहित होते हैं । वे दुर्गन्ध से व्याप्त, विशिष्ट चेतना से विहीन, अभागे, अकान्त-अकमनीय, अनिष्ट स्वर वाले, धीमी और फटी हुई आवाज वाले, विहिंस्य, जड़, वधिर, अंधे, गूंगे और अस्पष्ट उच्चारण करने वाले, अमनोज्ञ तथा विकृत इन्द्रियों वाले, जाति, कुल, गौत्र तथा कार्यों से नीचे होते हैं । उन्हें नीच लोगों का सेवक बनना पड़ता है । वे लोक में गर्दा के पात्र होते हैं । वे भृत्य होते हैं और विरुद्ध आचार-विचार वाले लोगों के आज्ञापालक या द्वेषपात्र होते हैं । वे दुर्बुद्धि होते हैं अतः लौकिक शास्त्र, वेद, आध्यात्मिक शास्त्र, आगमों या सिद्धान्तों के श्रवण एवं ज्ञान से रहित होते हैं । वे धर्मबुद्धि से रहित होते हैं ।
उस अशुभ या अनुपशान्त असत्य की अग्नि से जलते हुए वे मृषावादी अपमान, निन्दा, आक्षेप, चुगली, परस्पर की फूट आदि की स्थिति प्राप्त करते हैं । गुरुजनों, बन्धुबान्धवों, स्वजनों तथा मित्रजनों के तीक्ष्ण वचनों से अनादर पाते हैं । अमनोरम, हृदय और मन को सन्ताप देने वाले तथा जीवनपर्यन्त कठिनाई से मिटने वाले मिथ्या आरोपों को वे प्राप्त करते हैं । अनिष्ट, तीक्ष्ण, कठोर और मर्मवेधी वचनों से तर्जना, झिड़कियों और धिक्कार के कारण दीन मुख एवं खिन्न चित्त वाले होते हैं । वे खराब भोजन वाले और मैले तथा फटे वस्त्रों वाले होते हैं, उन्हें निकृष्ट वस्ती में क्लेश पाते हुए अत्यन्त एवं विपुल दुःखों की अग्नि