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औपपातिक-२०
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स्वाध्याय क्या है ? पाँच प्रकार का है । १. वाचना, २. प्रतिपृच्छना, ३. परिवर्तना, ४. अनुप्रेक्षा, ५. धर्मकथा । यह स्वाध्याय का स्वरूप है । ध्यान क्या है ? ध्यान के चार भेद हैं :- १. आर्त ध्यान, २. रौद्र ध्यान, ३. धर्म ध्यान, ४. शुक्ल ध्यान ।
आर्तध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है :- १. मन को प्रिय नहीं लगनेवाले विषय, स्थितियाँ आने पर उनके वियोग के सम्बन्ध में आकुलतापूर्ण चिन्तन करना । २. मन को प्रिय लगनेवाले विषयों के प्राप्त होने पर उनके अवियोग का आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। ३. रोग हो जाने पर उनके मिटने के सम्बन्ध में आकुलतापूर्ण चिन्तन करना । ४. पूर्व-सेवित काम-भोग प्राप्त होने पर, फिर कभी उनका वियोग न हो, यों आकुलतापूर्ण चिन्तन करना ।
आर्त ध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं । १. क्रन्दनता, २. शोचनता, ३. तेपनता, ४. विलपनता ।
रौद्र ध्यान चार प्रकार का है, जो इस प्रकार है-१. हिंसानुबन्धी, २. मृषानुबन्धी,. ३. स्तैन्यानुबन्धी, ४. संरक्षणानुबन्धी, रौद्र ध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं-१. उत्सन्नदोष, २. बहुदोष, ३. अज्ञानदोष, ४. आमरणान्तदोष ।
धर्म ध्यान स्वरूप, लक्षण, आलम्बन तथा अनुप्रेक्षा भेद से चार प्रकार का कहा गया है । प्रत्येक के चार-चार भेद हैं । स्वरूप की दृष्टि से धर्म-ध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं१. आज्ञा-विचय, २. अपाय-विचय, ३. विपाक-विचय, ४. संस्थान-विचय, धर्म-ध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं । वे इस प्रकार हैं-१. आज्ञा-रुचि, २. निसर्ग-रुचि, ३. उपदेशरुचि, ४. सूत्र-रुचि, धर्म-ध्यान के चार आलम्बन कहे गये हैं । १. वाचना, २. पृच्छना, ३. परिवर्तना, ४. धर्म-कथा । धर्म-ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ-बतलाई गई हैं । १. अनित्यानुप्रेक्षा, २. अशरणानुप्रेक्षा, ३. एकत्वानुप्रेक्षा, ४. संसारानुप्रेक्षा ।
शुक्ल ध्यान स्वरूप, लक्षण, आलम्बन तथा अनुप्रेक्षा के भेद से चार प्रकार का कहा गया है । इनमें से प्रत्येक के चार-चार भेद हैं । स्वरूप की दृष्टि से शुक्ल ध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं- (१) पृथक्त्व-वितर्क-सविचार, (२) एवत्व-वितर्क-अविचार, सूक्ष्मक्रियअप्रतिपाति समुच्छिन्नक्रिय-अनिवृत्ति-शुक्ल ध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं । १. विवेक, २. व्युत्सर्ग, ३. अव्यथा, ४. असंमोह । १. क्षान्ति, २. मुक्ति, ३. आर्जव, ४. मार्दव, शुक्ल ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं हैं । १. अपायानुप्रेक्षा, २. अशुभानुप्रेक्षा, ३. अनन्तवृत्तितानुप्रेक्षा, ४. विपरिणामानुप्रेक्षा ।
व्युत्सर्ग:क्या है-दो भेद हैं - १. द्रव्य-व्युत्सर्ग, २. भाव-व्युत्सर्ग, द्रव्य-व्युत्सर्ग क्या है-द्रव्य-व्युत्सर्ग के चार भेद हैं । १. शरीर-व्युत्सर्ग, २. गण-व्युत्सर्ग, ३. उपधि-व्युत्सर्ग, ४. भक्त-पान-व्युत्सर्ग, भाव-व्युत्सर्ग क्या है ? भाव-व्युत्सर्ग के तीन भेद कहे गये हैं-१. कषायव्युत्सर्ग, २. संसार-व्युत्सर्ग, ३. कर्म-व्युत्सर्ग कषाय-व्युत्सर्ग क्या है-कषाय-व्युत्सर्ग के चार भेद हैं, १. क्रोध-व्युत्सर्ग, २. मान-व्युत्सर्ग, ३. माया-व्युत्सर्ग, ४. लोभ-व्युत्सर्ग । यह कषाय-व्युत्सर्ग का विवेचन है । संसारव्युत्सर्ग क्या है ? संसारव्युत्सर्ग चार प्रकार का है । १. नैरयिक-संसारव्युत्सर्ग, २. तिर्यक्-संसारख्युत्सर्ग, ३. मनुज-संसारव्युत्सर्ग, ४. देवसंसार-व्युत्सर्ग। यह संसार-व्युत्सर्ग का वर्णन है । कर्मव्युत्सर्ग क्या है । कर्मव्युत्सर्ग आठ प्रकार का है । वह इस प्रकार है :- १. ज्ञानावरणीण-कर्म-व्युत्सर्ग, २. दर्शनावरणीय-कर्म-व्युत्सर्ग, ३. वेदनीयकर्म-व्युत्सर्ग, ४. मोहनीय-कर्म-व्युत्सर्ग, ५. आयुष्य-कर्म-व्युत्सर्ग, ६. नाम-कर्म-व्युत्सर्ग, ७. गोत्र-कर्म-व्युत्सर्ग, ८. अन्तराय-कर्म-व्युत्सर्ग । यह कर्म व्युत्सर्ग है ।