Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 238
________________ राजनीय ४२ २३७ ऋतुओं के श्रेष्ठ पुष्पों, समस्त गंधद्रव्यों, समस्त पुष्पसमूहों और सर्व प्रकार की औषधियों एवं सिद्धार्थकों को लिया और फिर पद्मद्रह एवं पुंडरीकद्रह पर आये । यहाँ आकर भी पूर्ववत् कलशों में द्रह - जल भरा तथा सुन्दर श्रेष्ठ उत्पल यावत् शतपत्र - सहस्रपत्र कमलों को लिया । फिर जहाँ हैमवत और ऐरण्यवत क्षेत्रों की रोहित, रोहितांसा तथा स्वर्णकूला और रूप्यकूला महानदियाँ थी, वहाँ आये, कलशों में उन नदियों का जल भरा तथा मिट्टी ली । जहाँ शब्दापाति विकटापाति वृत्त वैताढ्य पर्वत थे, वहां आये । समस्त ऋतुओं के उत्तमोत्तम पुष्पों आदि को लिया । वहाँ से वे महाहिमवंत और रुक्मि वर्षधर पर्वत पर आये और वहाँ से जल एवं पुष्प आदि लिये, फिर जहाँ महापद्म और महापुण्डरीक द्रह थे, वहाँ आये । आकर द्रह जल एवं कमल आदि लिये । तत्पश्चात् जहाँ हरिवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्र थे, हरिकांता और नारिकांता महानदियाँ थीं, गंधापाति, माल्यवंत और वृत्तवैताढ्य पर्वत थे, वहाँ आये और इन सभी स्थानों से जल, मिट्टी, औषधियाँ एवं पुष्प लिये । इसके बाद जहां निषध, नील नामक वर्षधर पर्वत थे, जहाँ तिगिंछ और केसरीद्रह थे, वहाँ आये, वहाँ आकर उसी प्रकार से जल आदि लिया । तत्पश्चात् जहाँ महाविदेह क्षेत्र था जहाँ सीता, सीतोदा महानदियाँ थी वहाँ आये और उसी प्रकार से उनका जल, मिट्टी, पुष्प आदि लिये । फिर जहाँ सभी चक्रवर्ती विजय थे, जहाँ मागध, वरदाम और प्रभास तीर्थ थे, वहाँ आये, तीर्थोदक लिया और सभी अन्तर नदियों के जल एवं मिट्टी को लिया फिर जहाँ वक्षस्कार पर्वत थे वहाँ आये और वहाँ से सर्व ऋतुओं के पुष्पों आदि को लिया । तत्पश्चात् जहाँ मन्दर पर्वत के ऊपर भद्रशाल वन था वहाँ आये, सर्व ऋतुओं के पुष्पों, समस्त औषधियों और सिद्धार्थकों को लिया । वहाँ से नन्दनवन में आये, सर्व ऋतुओं के पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों और सरस गोशीर्ष चन्दन को लिया । जहाँ सौमनस वन था, वहाँ आये । वहाँ से सर्व ऋतुओं के उत्तमोत्तम पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों, सरस गोशीर्ष चन्दन और दिव्य पुष्पमालाओं को लिया, लेकर पांडुक वन में आये और सर्व ऋतुओं के सर्वोत्तम पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों, सरस गोशीर्ष चन्दन, दिव्य पुष्पमालाओं, दर्दरमलय चन्दन की सुरभि गंध से सुगन्धित गंध-द्रव्यों को लिया । इन सब उत्तमोत्तम पदार्थों को लेकर वे सब आभियोगिक देव एक स्थान पर इकट्ठे हुए और फिर उत्कृष्ट दिव्यगति से यावत् जहाँ सौधर्म कल्प था और जहां सूर्याभविमान था, उसकी अभिषेक सभा थी और उसमें भी जहाँ सिंहासन पर बैठा सूर्याभदेव था, वहाँ आये । दोनों हाथ जोड़ आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके सूर्याभदेव को 'जय हो विजय' शब्दों से बधाया और उसके आगे महान् अर्थवाली, महा मूल्यवान्, महान् पुरुषों के योग्य विपुल इन्द्राभिषेक सामग्री उपस्थित की । चार हजार सामानिक देवों, परिवार सहित चार अग्रमहिषियों, तीन परिषदाओं, सात अनीकाधिपतियों यावत् अन्य दूसरे बहुत से देवों देवियों ने उन स्वाभाविक एवं विक्रिया शक्ति से निष्पादित श्रेष्ठ कमलपुष्पों पर संस्थापित, सुगंधित शुद्ध श्रेष्ठ जल से भरे हुए, चन्दन के लेप से चर्चित, पंचरंगे सूत-कलावे से आविद्ध बन्धे-लिपटे हुए कंठ वाले, पद्म एवं उत्पल के ढक्कनों से ढँके हुए, सुकुमाल कोमल हाथों से लिये गये और सभी पवित्र स्थानों के जल से भरे हुए एक हजार आठ स्वर्ण कलशों यावत् एक हजार आठ मिट्टी के कलशों, सब प्रकार की मृत्तिका एवं ऋतुओं के पुष्पों, सभी काषायिक सुगन्धित द्रव्यों यावत् औषधियों और सिद्धार्थकों से महान् ऋद्धि यावत् वाद्यघोषों पूर्णक सूर्याभ देव को अतीव गौरवशाली उच्चकोटि के इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त किया ।

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