Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 270
________________ राजप्रश्नीय-८१ २६९ नमस्कार हो । मेरे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक केशी कुमारश्रमण को नमस्कार हो । यहाँ स्थित मैं वहाँ बिराजमान भगवान् की वन्दना करता हूँ । वहाँ पर विराजमान वे भगवन् यहाँ रहकर वन्दना करने वाले मुझे देखें । पहले भी मैंने कैशी कुमारश्रमण के समक्ष स्थूल प्राणातिपात यावत् स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान किया है । अब इस समय भी मैं उन्हीं भगवन्तों की साक्षी से सम्पूर्ण प्राणातिपति यावत् समस्त परिग्रह, क्रोध यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का प्रत्याख्यान करता हूँ । अकरणीय समस्त कार्यों एवं मन-वचन-काय योग का प्रत्याख्यान करता हूं और जीवनपर्यंत के लिए सभी अशन-पान आदि रूप चारों प्रकार के आहार का भी त्याग करता हूं। परन्तु मुझे यह शरीर इष्ट है, मैंने यह ध्यान रखा है कि इसमें कोई रोग आदि उत्पन्न न हों परन्तु अब अन्तिम श्वासोच्छ्वास तक के लिये इस शरीर का भी परित्याग करता हूँ । इस प्रकार के निश्चय के साथ पुनः आलोचना और प्रतिक्रमण करके समाधिपूर्वक मरण समय के प्राप्त होने पर काल करके सौधर्मकल्प के सूर्याभविमान की उपपात सभा में सूर्याभदेव के रूप में उत्पन्न हुआ, इत्यादि ।। 'प्रदेशी राजा' के अधिकार का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण । तत्काल उत्पन्न हुआ वह सूर्याभदेव पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ | आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति, भाषा-मनःपर्याप्ति । इस प्रकार से हे गौतम ! उस सूर्याभदेव ने यह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवधुति और दिव्य देवानुभाव उपार्जित किया है, प्राप्त किया है और अधिगत किया है । [८२] गौतम-भदन्त ! उस सूर्याभदेव की आयुष्यमर्यादा कितने काल की है ? गौतम! चार पल्योपम की है । भगवन् ! आयुष्यपूर्ण होने, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर सूर्याभदेव उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल आढ्य, दीप्त, विपुलबड़े कुटुम्ब परिवारवाले, बहुत से भवनों, शय्याओं, आसनों और यानवाहनों के स्वामी, बहुत से धन, सोने-चांदी के अधिपति, अर्थोपार्जन के व्यापार-व्यवसाय में प्रवृत्त एवं दीनजनों को जिनके यहाँ से प्रचुर मात्रा में भोजनपान प्राप्त होता है, सेवा करने के लिये बहुत से दास-दासी रहते हैं, बहुसंख्यक गाय, भैंस, भेड़ आदि पशधन है और जिनका बहुत से लोगों द्वारा भी पराभव नहीं किया जा सकता. ऐसे प्रसिद्ध कुलों में से किसी एक कुल में वह पुत्र रूप से उत्पन्न होगा । तत्पश्चात् उस दारक के गर्भ में आने पर माता-पिता की धर्म में दृढ प्रतिज्ञा श्रद्धा होगी । उसके बाद नौ मास और साढ़े सात रात्रि-दिन बीतने पर दारक की माता सुकुमार हाथ-पैर वाले शुभ लक्षणों एवं परिपूर्ण पांच इन्द्रियों और शरीर वाले, सामुद्रिक शास्त्र में बताये गये शारीरिक लक्षणों, तिल आदि व्यंजनों और गुणों से युक्त, माप, तोल और नाप में बराबर, सुजात, सर्वांगसुन्दर, चन्द्रमा के समान सौम्य आकार वाले, कमनीय, प्रियदर्शन एवं सरूपवान् पुत्र को जन्म देगी । तब उस दारक के माता-पिता प्रथम दिवस स्थितिपतिता करेंगे । तीसरे दिन चन्द्र और सूर्यदर्शन सम्बंधी क्रियायें करेंगे । छठे दिन रात्रिजागरण करेंगे । बारहवें दिन जातकर्म संबन्धी अशुचि की निवृत्ति के लिये घर झाड़-बुहार और लीप-पोत कर शुद्ध करेंगे । घर की शुद्धि करने के बाद अशन-पान-खाद्य-स्वाध रूप विपुल भोजनसामग्री बनवायेंगे और मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजन-संबन्धियों एवं दास-दासी आदि परिजनों, परिचितों को आमंत्रित करेंगे । इसके बाद स्नान, बलिकर्म, तिलक आदि कौतुक-मंगल-प्रायश्चित्त यावत् आभूषणों

Loading...

Page Navigation
1 ... 268 269 270 271 272 273 274