Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 271
________________ २७० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद से शरीर को अलंकृत करके भोजनमंडप में श्रेष्ठ आसनों पर सुखपूर्वक बैठकर मित्रों यावत परिजनों के साथ विपुल अशनादि रूप भोजन का आस्वादन, विशेष रूप में आस्वादन करेंगे, उसका परिभोग करेंगे, एक दूसरे को परोसेंगे और भोजन करने के पश्चात् आचमन-कुल्ला आदि करके स्वच्छ, परम शुचिभूत होकर उन मित्रों, ज्ञातिजनों यावत् परिजनों का विपुल वस्त्र, गंध, माला, अलंकारों आदि से सत्कार-संमान करेंगे और फिर उन्हीं मित्रों यावत् परिजनों से कहेंगे देवानुप्रियो ! जब से यह दारक माता की कुक्षि में गर्भ रूप से आया था तभी से हमारी धर्म में दृढ़ प्रतिज्ञा-श्रद्धा हुई है, इसलिये हमारे इस बालक का 'दृढप्रतिज्ञ' यह नाम हो । इस तरह उस दारक के माता-पिता ‘दृढप्रतिज्ञ' यह नामकरण करेंगे । इस प्रकार से उसके माता-पिता अनुक्रम से-स्थितिपतिता, चन्द्र-सूर्यदर्शन, धर्मजागरण, नामकरण, अन्नप्राशन, प्रतिवर्धापन, प्रचंक्रमण, कर्णवेधन, संवत्सर प्रतिलेख और चूलोपनयन आदि तथा अन्य दूसरे भी बहुत से गर्भाधान, जन्मादि सम्बन्धी उत्सव भव्य समारोह के साथ प्रभावक रूप में करेंगे। [८३] उसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ शिशु, क्षीरधात्री, मंडनधात्री, मज्जनधात्री, अंकधात्री और क्रीडापनधात्री-इन पांच धायमाताओं की देखरेख में तथा इनके अतिरिक्त इंगित, चिन्तित, प्रार्थित, को जानने वाली, अपने-अपने देश के वेष को पहनने वाली, निपुण, कुशल-प्रवीण एवं प्रशिक्षित ऐसी कुब्जा, चिलातिका, वामनी, वडभी, बर्बरी, बकुशी, योनकी, पल्हविका, ईसिनिका, वारुणिका, लासिका, लाकुसिका, द्रावड़ी, सिंहली, पुलिंदी, आरबी, पक्कणी, बहली, मुण्डी, शबरी, (शबर देश की), पारसी (पारस देश की) आदि अनेक देश-विदेशों की तरुण दासियों एवं वर्षधरों, कंचुकियों और महत्तरकों के समुदाय से परिवेष्टित होता हुआ, हाथों ही हाथों में लिया जाता, दुलराया जाता, एक गोद से दूसरी गोद में लिया जाता, गा-गाकर बहलाया जाता, क्रीड़ा आदि द्वारा लालन-पालन किया जाता, लाड़ किया जाता, लोरियां सुनाया जाता, चुम्बन किया जाता और रमणीय मणिजटित प्रांगण में चलाया जाता हुआ व्याघातरहित गिरि-गुफा में स्थित श्रेष्ठ चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक दिनोंदिन परिवर्धित होगा । तत्पश्चात् दृढ़प्रतिज्ञ बालक को कुछ अधिक आठ वर्ष का होने पर कलाशिक्षण के लिये माता-पिता शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहर्त में स्नान, बलिकर्म, कौतुक-मंगलप्रायश्चित्त कराके और अलंकारों से विभूषित कर ऋद्धि-वैभव, सत्कार, समारोहपूर्वक कलाचार्य के पास ले जायेंगे । तब कलाचार्य उस दृढ़प्रतिज्ञ बालक को गणित जिनमें प्रधान है ऐसी लेख आदि शकुनिरुत तक ही बहत्तर कलाओं को सूत्र से, अर्थ से, ग्रन्थ से तथा प्रयोग से सिद्ध करायेंगे, अभ्यास करायेगे । १. लेखन, २. गणित, ३. रूप सजाना, ४. नाट्य, ५. संगीत, ६. वाद्य, ७. स्वर, ८. ढोल, ९. सुर-ताल, १०. द्यूत, ११. वाद-विवाद, १२. पासा, १३. चौपड़, १४. काव्य, १५. जल और मिट्टी को मिलाकर वस्तु निर्माण करना, १६. अन्न, १७. पानी, १८. वस्त्र, १९. विलेपनविधि, २०. शय्या, २१. छन्दो, २२. पहेलियां, २३. मागधिक, २४. निद्रायिका, २५. प्राकृतभाषा, २६. गीति-छंद, २७. श्लोक, २८. हिरण्ययुक्ति, २९. स्वर्णयुक्ति, ३०. आभूषण, ३१. तरुणीप्रतिकर्म, ३२. स्त्रीलक्षण, ३३. पुरुषलक्षण, ३४. अश्वलक्षण, ३५. हाथीलक्षण, ३६. मुगालक्षण, ३७. छत्रलक्षण, ३८. चक्र-लक्षण, ३९. दंड-लक्षण, ४०. असिलक्षण, ४१. मणि-लक्षण, ४२. काकणी-लक्षण, ४३. वास्तुविद्या, ४४. नगरबसाना, ४५. स्कन्धावार, ४६. माप-नाप, ४७. प्रतिचार, ४८. व्यूह, ४९. चक्रव्यूह, ५०. गरुडव्यूह,

Loading...

Page Navigation
1 ... 269 270 271 272 273 274