Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 243
________________ २४२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद उसके मध्य में बना हुआ वज्रमय अक्षपाट तथा उस पर बनी मणिपीठिका एवं मणिपीठिका पर स्थापित सिंहासन था, वहाँ आया और मोरपीछी लेकर उससे अक्षपाट, मणिपीठिका और सिंहासन को प्रमार्जित किया, दिव्य जलधारा से सिंचित किया, सरस गोशीर्ष चन्दन से चर्चित किया, धूपप्रक्षेप किया, पुष्प चढ़ाये तथा ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लम्बी-लम्बी गोलगोल मालाओं से विभूषित किया यावत् धूपक्षेप करने के बाद अनुक्रम से जहाँ उसी दक्षिणी प्रेक्षागृह-मण्डप के पश्चिमी द्वार एवं उत्तरी द्वार थे वहाँ आया और वहाँ आकर पूर्ववत् प्रमार्जनादि कार्य किये । उसके बाद पूर्वी द्वार पर आया । यहाँ आकर भी सब कार्य पूर्ववत् किये । तत्पश्चात् दक्षिणी द्वार पर आया, वहाँ आकर भी प्रमार्जनादि सब कार्य किये । इसके पश्चात् दक्षिणदिशावर्ती चैत्यस्तूप के सन्मुख आया । वहाँ आकर स्तूप और मणिपीठिका को प्रमार्जित किया, दिव्य जलधारा से सिंचित किया, सरस गोशीर्ष चन्दन से चर्चित किया, धूप जलाई, पुष्प चढ़ाये, लम्बी-लम्बी मालायें लटकाईं आदि सब कार्य सम्पन्न किये । अनन्तर जहाँ पश्चिम दिशा की मणिपीठिका थी, जहाँ पश्चिम दिशा में बिराजमान जिनप्रतिमा थी वहाँ आकर प्रमार्जनादि सब कार्य किये । इसके बाद उत्तरदिशावर्ती मणिपीठिका और जिनप्रतिमा के पास आया । प्रमाजनादि सब कार्य किये । इसके पश्चात् जहाँ पूर्वदिशावर्ती मणिपीठिका थी तथा पूर्वदिशा में स्थापित जिनप्रतिमा थी, वहाँ आया । पूर्ववत् प्रमार्जन आदि कार्य किये । इसके बाद जहाँ दक्षिण दिशा की मणिपीठिका और दक्षिणदिशावर्ती जिनप्रतिमा थी वहां आया और पूर्ववत् कार्य किये । इसके पश्चात् दक्षिणदिशावर्ती चैत्यवृक्ष के पास आया । पूर्ववत् प्रमार्जनादि कार्य किये । इसके बाद जहाँ माहेन्द्रध्वज था, दक्षिण दिशा की नंदा पुष्करिणी थी, वहाँ आया । मोरपीछी को हाथ में लिया और फिर तोरणों, त्रिसोपानों काष्ठपुतलियों और सर्परूपकों को मोरपीछी से प्रमार्जित किया, दिव्य जलधारा सींची, सरस गौशीर्ष चंदन से चर्चित किया, पुष्प चढ़ाये, लम्बी-लम्बी पुष्पमालाओं से विभूषित किया और धूपक्षेप किया । तदनन्तर सिद्धायतन की प्रदक्षिणा करके उत्तरदिशा की नंदा पुष्करिणी पर आया और वहाँ पर भी पूर्ववत् प्रमार्जनादि धूपक्षेप पर्यन्त कार्य किये । इसके बाद उत्तरदिशावर्ती चैत्यवृक्ष और चैत्यस्तम्भ के पास आया एवं पूर्ववत् प्रमार्जनादि कार्य किये । इसके पश्चात् पश्चिम दिशा में स्थापित प्रतिमा थी, वहाँ आकर भी पूर्ववत् धूपक्षेपपर्यन्त कार्य किये । तत्पश्चात् वह उत्तर दिशा के प्रेक्षागृह मण्डप में आया और धूपक्षेपपर्यन्त दक्षिण दिशा के प्रेक्षागृहमण्डप जैसी समस्त वक्तव्यता यहाँ जानना । इसके बाद वह उत्तर दिशा के मुखमण्डप और उस उत्तरदिशा के मुखमण्डप के बहुमध्य देशभाग में आया । यहाँ आकर पूर्ववत् अक्षपाट, सब कार्य किये । इसके बाद वह पश्चिमी द्वार पर आया, वहाँ पर भी प्रमार्जनादि सब कार्य किये । तत्पश्चात् उत्तरी द्वार और उसकी दक्षिण दिशा में स्थित स्तम्भपंक्ति के पास आया । वहाँ भी पूर्ववत् सब कार्य किये । तदनन्तर सिद्धायतन के उत्तर द्वार पर आया । यहाँ भी पुतलियों आदि के प्रमार्जन आदि कार्य किये । इसके अनन्तर सिद्धायतन के पूर्वदिशा के द्वार पर आया र यहाँ पर भी पूर्ववत् कार्य किये । इसके बाद जहाँ पूर्वदिशा का मुखमण्डप का अतिपर भी पूर्ववत् कार्य किये । इसके बाद जहाँ पूर्वदिशा का मुखमण्डप का अतिमध्य देशभाग था, वहाँ आया और प्रमार्जना आदि सब कार्य किये । इससे बाद जहाँ उस पूर्व दिशा के मुखमण्डप का दक्षिणी द्वार था और उसकी पश्चिम दिशा में स्थित स्तम्भपंक्ति थी वहां आया । फिर उत्तरदिशा के द्वार पर आया और पहले के समान

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