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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
बादल जैसा दिखाई देता था । वह अपने बड़े डीलडौल के कारण ऐसा लगता था, मानो अकस्मात् कोई चलता-फिरता पर्वत उत्पन्न हो गया हो । वह मदोन्मत्त था । बड़े मेघ की तरह वह गुलगुल शब्द द्वारा अपने स्वर में मानो गरजता था । उसकी गति मन तथा वायु के वेग को भी पराभूत करने वाली थी । विशाल देह तथा प्रचंड शक्ति के कारण वह भीम प्रतीत होता था । उस संग्राम योग्य आभिषेक्य हस्तिरत्न को महावत ने सन्नद्ध किया उसे तैयार कर घोड़े, हाथी, रथ तथा उत्तम योद्धाओं से परिगठित सेना को तैयार कराया । फिर वह महावत, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया और आज्ञा पालन किये जा चुकने की सूचना दी ।
तदनन्तर सेनानायक ने यानशालिक को बुलाया । उससे कहा -सुभद्रा आदि रानियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए यात्राभिमुख, जुते हुए यान बाहरी सभा भवन के निकट उपस्थित करो । हाजिर कर आज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दो । यानशालिक ने सेनानायक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया । वह, जहाँ यानशाला थी, वहाँ आया । यानों का निरीक्षण किया । उनका प्रमार्जन किया । उन्हें वहाँ से हटाया । बाहर निकाला। - उन पर लगी खोलियाँ दूर की । यानों को सजाया । उन्हें उत्तम आभरणों से विभूषित किया । वह जहाँ वाहनशाला थी, आया । वाहनशाला में प्रविष्ट हुआ । वाहनों का निरीक्षण किया । उन्हें संप्रमार्जित किया - वाहनशाला से बाहर निकाला । उनकी पीठ थपथपाई । उन पर लगे आच्छादक वस्त्र हटाये । वाहनों को सजाया । उत्तम आभरणों से विभूषित किया । उन्हें यानों में जोता । प्रतोत्रयष्टिकाएँ, तथा प्रतोत्रधर को प्रस्थापित किया- उन्हें यष्टिकाएँ देकर यान - चालन का कार्य सौंपा । यानों को राजमार्ग पकड़वाया । वह, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया । आकर सेनानायक को आज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दी ।
फिर सेनानायक ने नगरगुप्तिक नगररक्षक को बुलाकर कहा- देवानुप्रिय ! चम्पा नगरी के बाहर और भीतर, उसके संघाटक, त्रिक, चतुषक, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग - इन सबकी सफाई कराओ । वहाँ पानी का छिड़काव कराओ, गोबर आदि का लेप कराओ यावत् नगरी
वातावरण को उत्कृष्ट सौरभमय करवा दो । यह सब करवाकर मुझे सूचित करो कि आज्ञा का अनुपालन हो गया है । नगरपाल ने सेनानायक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया । चम्पानगरी की बाहर से, भीतर से सफाई, पानी का छिड़काव आदि करवाकर, वह जहाँ सेनानायक था, वहाँ आकर आज्ञापालन किये जा चुकने की सूचना दी ।
तदनन्तर सेनानायक ने भंभसार के पुत्र राजा कूणिक के प्रधान हाथी को सजा हुआ देखा । चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध देखा । सुभद्रा आदि रानियों के उपस्थापित यान देखे । चम्पानगरी की भीतर और बाहर से सफाई देखी । वह सुगंध से महक रही है । यह सब देखकर वह मन में हर्षित, परितुष्ट, आनन्दित एवं प्रसन्न हुआ । भंभसार का पुत्र राजा कूणिक जहाँ था, वह वहाँ आया । आकर हाथ जोड़े, राजा से निवेदन किया- देवानुप्रिय ! आभिषेक्य हस्तिरत्न तैयार है, घोड़े, हाथी, रथ, उत्तम योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध है । सुभद्रा आदि रानियों के लिए, प्रत्येक के लिए अलग-अलग जुते हुए यात्राभिमुख यान बाहरी सभा भवन के निकट उपस्थापित हैं । चम्पानगरी की भीतर और बाहर से सफाई करवा दी गई है, पानी का छिड़काव करवा दिया गया है, वह सुगंध से महक रही है । देवानुप्रिय ! श्रमण भगवान् महावीर के अभिवन्दन हेतु आप पधारें ।
[३१] भंसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सुना । वह प्रसन्न एवं