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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नहीं । उन पख्रिाजकों के लिए मागधतोल के अनुसार एक आढक जल लेना कल्पता है । वह भी बहता हुआ हो, एक जगह बंधा हुआ या बन्द नहीं यावत् वह भी केवल हाथ, पैर, चरू, चमच, धोने के लिए ग्राह्य है, पीने के लिए या स्नान करने के लिए नहीं ।
वे पब्रिाजक इस प्रकार के आचार या चर्या द्वारा विचरण करते हुए, बहुत वर्षों तक पब्रिाजक-पर्याय का पालन करते है । बहुत वर्षों तक वैसा कर मृत्युकाल आने पर देह त्याग कर उत्कृष्ट ब्रह्मलोक कल्प में देव रूप में उत्पन्न होते हैं । तदनुरूप उनकी गति और स्थिति होती है । उनकी स्थिति या आयुष्य दस सागरोपम कहा गया है । अवशेष वर्णन पूर्ववत् है ।
[४९] उस काल, उस समय, एक बार जब ग्रीष्म ऋतु का समय था, जेठ का महीना था, अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी गंगा महानदी के दो किनारों से काम्पिल्यपुर नामक नगर से पुरिमताल नामक नगर को रवाना हुए । वे पब्रिाजक चलते-चलते एक ऐसे जंगल में पहुँच गये, जहाँ कोई गाँव नहीं था, न जहाँ व्यापारियों के काफिले, गोकुल, उनकी निगरानी करनेवाले गोपालक आदि का ही आवागमन था, जिसके मार्ग बड़े विकट थे । वे जंगल का कुछ भाग पार कर पाये थे कि चलते समय अपने साथ लिया हुआ पानी पीतेपीते क्रमशः समाप्त हो गया । तब वे पब्रिाजक, जिनके पास का पानी समाप्त हो चुका था, प्यास से व्याकुल हो गये । कोई पानी देनेवाला दिखाई नहीं दिया । वे परस्पर एक दूसरे को संबोधित कर कहने लगे।
देवानुप्रियो ! हम ऐसे जंगल का, जिसमें कोई गाँव नहीं है । यावत् कुछ ही भाग पार कर पाये कि हमारे पास जो पानी था, समाप्त हो गया । अतः देवानुप्रियो ! हमारे लिए यही श्रेयस्कर है, हम इस ग्रामरहित वन में सब दिशाओं में चारों ओर जलदाता की मार्गणागवेषणा करें । उन्होंने परस्पर ऐसी चर्चा कर यह तय किया । ऐसा तय कर उन्होंने उस गाँव रहित जंगल में सब दिशाओं में चारों ओर जलदाता की खोज की । खोज करने पर भी कोई जलदाता नहीं मिला । फिर उन्होंने एक दूसरे को संबोधित कर कहा । देवानुप्रियो ! यहाँ कोई पानी देनेवाला नहीं है । अदत्त, सेवन करना हमारे लिए कल्प्य नहीं है । इसलिए हम इस समय आपित्तकाल में भी अदत्त का ग्रहण न करें, सेवन न करें, जिससे हमारे तप का लोप न हो । अतः हमारे लिए यही श्रेयस्कर है, हम त्रिदण्ड-कमंडलु, रुद्राक्ष-मालाएँ, करोटिकाएँ, वृषिकाएँ, षण्नालिकाएँ, अंकुश, केशरिकाएँ, पवित्रिकाएँ, गणेत्रिकाएँ, सुमिरिनियाँ, छत्र, पादुकाएँ, काठ की खड़ाऊएँ, धातुरक्त शाटिकाएँ एकान्त में छोड़कर गंगा महानदी में वालू का संस्तारक तैयार कर संलेखनापूर्वक शरीर एवं कषायों को क्षीण करते हुए आहार-पानी का परित्याग कर, कटे हुए वृक्ष जैसी निश्चेष्टावस्था स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए संस्थित हों । परस्पर एक दूसरे से ऐसा कह उन्होंने यह तय किया । ऐसा तय कर उन्होंने त्रिदण्ड आदि
अपने उपकरण एकान्त में डाल दिये । महानदी गंगा में प्रवेश किया । बालू का संस्तारक किया । वे उस पर आरूढ हुए । पूर्वाभिमुख हो पद्मासन में बैठे । बैठकर दोनों हाथ जोड़े और बोले ।
___ अर्हत्-इन्द्र आदि द्वारा पूजित यावत् सिद्धावस्था नामक स्थिति प्राप्त किये हुए-सिद्धों को नमस्कार हो । भगवान् महावीर को, जो सिद्धावस्था प्राप्त करने में समुद्यत हैं, हमारा नमस्कार हो । हमारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक अम्बड पब्रिाजक को नमस्कार हो । पहले हमने अम्बड पब्रिाजक के पास स्थूल प्राणातिपात, मृषावाद, चोरी, सब प्रकार के अब्रह्मचर्य तथा स्थूल परिग्रह का जीवन भर के लिए प्रत्याख्यान किया था । इन समय भगवान् महावीर के साक्ष्य से हम सब प्रकार की हिंसा, आदि का जीवन भर के लिए त्याग करते हैं । सर्व प्रकार