________________
राजप्रश्नीय-३५
२३१
प्रासादावतंसकों से परिवेष्टित है । ये चारों प्रासादावतंसक ढाई सौ योजन ऊँचे और चौड़ाई में सवा सौ योजन चौड़े हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् । ये चारों प्रासादावतंसक भी पुनः चारों दिशाओं में अपनी ऊँचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से घिरे हैं । ये प्रासादावतंसक एक सौ पच्चीस योजन ऊँचे और साढ़े बासठ योजन चौड़े हैं तथा ये चारों ओर फैल रही प्रभा से हंसते हुए-से दिखते हैं, यहाँ से लेकर भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, आठ-आठ मंगल, ध्वजाओं, छात्रातिछत्रों से सुशोभित हैं, पर्यन्त इनका वर्णन करना । ये प्रासादावतंसक भी चारों दिशाओं में अपनी ऊँचाई से आधी ऊँचाई वाले अन्य चार प्रासादावतंसकों से परिवेष्टिक हैं । ये प्रासादावतंसक साढ़े बासठ योजन एंचे और इकतीस योजन एक कोस चौड़े हैं । इन प्रासादों के भूमिभाग, चंदेवा, सपरिवार सिंहासन, ऊपर आठ मंगल, ध्वजाओं छत्रातिछत्रों आदि का वर्णन भी पूर्ववत् ।
[३६] उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और बहत्तर योजन ऊँची सुधर्मा नामक सभा है । यह सभा अनेक सैकड़ों खंभों पर सन्निविष्ट यावत् अप्सराओं से व्याप्त अतीव मनोहर है । इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं । पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में । वे द्वार ऊँचाई में सोलह योजन ऊँचे,
आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेश मार्ग वाले हैं । वे द्वार श्वेत वर्ण के हैं । श्रेष्ठ स्वर्ण से निर्मित शिखरों एवं वनमालाओं से अलंकृत हैं, आदि वर्णन पूर्ववत् ।।
उन द्वारों के आगे सामने एक-एक मखमंडप हैं । ये मंडप सौ योजन लम्बे. पचास योजन चौड़े और ऊँचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊँचे हैं । सुधर्मा सभा के समान इनका शेष वर्णन करना । इन मंडपों की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं, यथा-एक पूर्व में, एक दक्षिण में और एक उत्तर में । ये द्वार ऊँचाई में सोलह योजन ऊंचे हैं, आठ योजन चौड़े और उतने ही प्रवेशमार्ग वाले हैं । ये द्वार श्वेत धवलवर्ण और श्रेष्ठ स्वर्ण से बनी शिखरों, वनमालाओं से अलंकृत हैं, पर्यन्त का वर्णन पूर्ववत् । उन मुखमंडपो में से प्रत्येक के आगे प्रेक्षागृहमंडप बने हैं । इन मंडपों के द्वार, भूमिभाग, चांदनी आदि का वर्णन मुखमंडपों की वक्तव्यता के समान जानना ।
उन प्रेक्षागृह मंडपों के अतीव रमणीय समचौरस भूमिभाग के मध्यातिमध्य देश में एक-एक वज्ररत्नमय अक्षपाटक-मंच कहा गया है । उन वज्ररत्नमय अक्षपाटकों के भी बीचाबीच आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार योजन मोटी और विविध प्रकार के मणिरत्नों से निर्मित निर्मल यावत् प्रतिरूप एक-एक मणिपीठिकायें बनी हुई हैं । उन मणिपीठिकाओं के ऊपर एक-एक सिंहासन रखा है । भद्रासनों आदि आसनों रूपी परिवार सहित उन सिंहासनों का वर्णन करना । उन प्रेक्षागृह मंडपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें, छत्रातिछत्र सुशोभित हो रहे हैं ।
उन प्रेक्षागृह मंडपों के आगे एक-एक मणिपीठिका है । ये मणिपीठिकायें सोलहसोलह योजन लम्बी-चौड़ी आठ योजन मोटी हैं । ये सभी सर्वात्मना मणिरत्नमय, स्फटिक मणि के समान निर्मल और प्रतिरूप हैं । उन प्रत्येक मणिपीठों के ऊपर सोलह-सोलह योजन लम्बे-चौड़े समचौरस और ऊंचाई में कुछ अधिक सोलह योजन ऊंचे, शंख, अंकरत्न, यावत् सर्वात्मना रत्नों से बने हुए स्वच्छ यावत् असाधारण रमणीय स्तूप बने हैं । उन स्तूपों के ऊपर आठ-आठ मंगल, ध्वजायें छत्रातिछत्र यावत् सहस्रपत्र कमलों के झूमके सुशोभित हो रहे हैं। उन स्तूपों की चारों दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका है । ये आठ योजन लम्बी-चौड़ी, चार