Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 235
________________ २३४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद 'चोप्पाल' नामक प्रहरणकोश बना हुआ है । यह आयुधगृह सर्वात्मना रजतमय, निर्मल यावत् प्रतिरूप है । उस प्रहरणकोश में सूर्याभ देव के परिघरत्न, तलवार, गदा, धनुष आदि बहुत श्रेष्ठ प्रहरण सुरक्षित रखे हैं । वे सभी शस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल, चमकीले, तीक्ष्ण धार वाले और मन को प्रसन्न करने वाले आदि हैं । सुधर्मा सभा का ऊपरी भाग आठ-आठ मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछछ्त्रों से सुशोभित हो रहा है । [३९] सुधर्मा सभा के ईशान कोण में एक विशाल ( जिनालय) सिद्धायतन है । वह सौ योजन लम्बा, पचास योजन चौड़ा और बहत्तर योजन ऊँचा है । तथा इस सिद्धायतन का गोमानसिकाओं पर्यन्त एवं भूमिभाग तथा चंदेवा का वर्णन सुधर्मासभा के समान जानना । उस सिद्धायतन (जिनालय) के ठीक मध्यप्रदेश में सोलह योजन लम्बी-चौड़ी, आठ योजन मोटी एक विशाल मणिपीठिका बनी हुई है । उस मणिपीठिका के ऊपर सोलह योजन लम्बा-चौड़ा और कुछ अधिक सोलह योजन ऊँचा, सर्वात्मना मणियों से बना हुआ यावत् प्रतिरूप एक विशाल देवच्छन्द स्थापित है और उस पर तीर्थंकरों की ऊँचाई के बराबर वाली एक सौ आठ जिनप्रतिमाएँ बिराजमान हैं । उन जिन प्रतिमाओं का वर्णन इस प्रकार है, जैसे कि उन प्रतिमाओं की हथेलियाँ और पगथलियाँ तपनीय स्वर्णमय हैं । मध्य में खचित लोहिताक्ष रत्न से युक्त अंकरत्न के नख हैं । जंघायें, पिंडलियाँ और देहलता कनकमय है । नाभियाँ तपनीयमय हैं । रोमराज रिष्ट रत्नमय हैं । चूचक और श्रीवत्स तपनीयमय । होठ प्रवाल के बने हुए हैं, दंतपंक्ति स्फटिकमणियों और जिह्वा एवं तालु तपनीय-स्वर्ण के हैं । नासिकायें बीच में लोहिताक्ष रत्नखचित ककनमय हैं, नेत्र लोहिताक्ष रतन से खचित मध्य-भाग युक्त अंकरन के हैं और नेत्रों की तारिकायें अक्षिपत्र तथा भौहें रिष्टरत्नमय हैं । कपोल, कान और ललाट कनकमय हैं । शीर्षघटी वज्र रत्नमय है । केशान्त एवं केशभूमि तपनीय स्वर्णमय है और केश रिष्टरत्नमय हैं । उन जिन प्रतिमाओं में से प्रत्येक प्रतिमा के पीछे एक एक छत्रधारक प्रतिमायें हैं । वे छत्रधारक प्रतिमायें लीला करती हुई-सी भावभंगिमा पूर्वक हिम, रजत, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान प्रभा ले कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त धवल आतपत्रों को अपने-अपने हाथों में धारण किये हुए खड़ी हैं । प्रत्येक जिन - प्रतिमा के दोनों पार्श्व भागों में एक एक चामरधारक - प्रतिमायें हैं । वे चामर - धारक प्रतिमायें अपने अपने हाथों में विविध मणिरत्नों से रचित चित्रामों से युक्त चन्द्रकान्त, वज्र और वैडूर्य मणियों की डंडियों वाले, पतले रजत जैसे श्वेत लम्बे-लम्बे बालों वाले शंख, अंकरत्न, कुन्दपुष्प, जलकण, रजत और मन्थन किये हुए अमृत के फेनपुंज सदृश श्वेत-धवल चामरों को धारण करके लीलापूर्वक बींजती हुई-सी खड़ी हैं । उन जिन - प्रतिमाओं के आगे दो-दो नाग-प्रतिमायें, यक्षप्रतिमायें, भूतप्रतिमायें, कुंड धारक प्रतिमायें खड़ी हैं । ये सभी प्रतिमायें सर्वात्मना रत्नमय, स्वच्छ यावत् अनुपम शोभा से सम्पन्न हैं । उन जिन - प्रतिमाओं के आगे एक सौ आठ-एक सौ आठ घंटा, चन्दनकलश, भृंगार, दर्पण, थाल, पात्रियां, सुप्रतिष्ठान, मनोगुलिकायें, वातकरक चित्रकरक, रत्नकरंडक, अश्वकंठ यावत् वृषभकंठ पुष्पचंगेरिकायें यावत् मयूरपिच्छ चंगेरिकायें, पुष्पषटलक, तेलसमुद्गक यावत् अंजनसमुद्गक, एक सौ आठ ध्वजायें, एक सौ आठ धूपकडुच्छुक रखे हैं । सिद्धायतन का ऊपरी भाग स्वस्तिक आदि आठ-आठ मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों से शोभायमान है । [४०] सिद्धायतन के ईशान कोने में एक विशाल श्रेष्ठ उपपात -सभा बनी हुई है ।

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