Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 224
________________ राजप्रश्नीय-२७ २२३ पाखों की बाजुयें अंकरत्नों की हैं । छप्पर के नीचे सीधी और आड़ी लगी हुई वल्लियाँ तथा कबेलू ज्योतितस-रत्नमयी हैं । उनकी पाटियाँ चाँदी की हैं । अवघाटनियाँ स्वर्ण की बनी हुई हैं । ऊपरि प्रोच्छनियाँ वज्ररत्नों की हैं । नीचे के आच्छादन सर्वात्मना श्वेत-धवल और रजतमय हैं । उनके शिखर अंकरत्नों के हैं और उन पर तपनीय-स्वर्ण की स्तूपिकायें बनी हुई हैं । ये द्वार शंख के समान विमल, दही एवं दुग्धफेन और चाँदी के ढेर जैसी श्वेत प्रभा वाले हैं । उन द्वारों के ऊपरी भाग में तिलकरत्नों से निर्मित अनेक प्रकार के अर्धचन्द्रों के चित्र बने हुए हैं । अनेक प्रकार की मणियों की मालाओं से अलंकृत हैं । वे द्वार अन्दर और बाहर अत्यन्त स्निग्ध और सुकोमल हैं । उनमें सोने के समान पीली बालुका बिछी हुई है । सुखद स्पर्श वाले रूपशोभासम्पन्न, मन को प्रसन्न करने वाले, देखे योग्य, मनोहर और अतीव रमणीय हैं । [२८] उन द्वारों की दोनों बाजुओं की दोनों निशीधिकाओं में सोलह-सोलह चन्दनकलशों की पंक्तियाँ हैं, ये चन्दनकलश श्रेष्ठ उत्तम कमलों पर प्रतिष्ठित हैं, उत्तम सुगन्धित जल से भरे हुए हैं, चन्दन के लेप से चर्चित हैं, उनके कंठों में कलावा बंधा हुआ है और मुख पद्मोत्पल के ढक्कनों से ढंके हुए हैं । ये सभी कलश सर्वात्मना रत्नमय हैं, निर्मल यावत् बृहत् इन्द्रकुंभ जैसे विशाल एवं अतिशय रमणीय हैं । उन द्वारों की उभय पार्श्ववर्ती दोनों निषीधिकाओं में सोलह-सोलह नागदन्तों की पंक्तियाँ कही हैं । ये नागदन्त मोतियो और सोने की मालाओं में लटकती हुई गवाक्षाकार धुंघरुओं से युक्त, छोटी-छोटी घंटिकाओं से परिवेष्टित हैं । इनका अग्रभाग ऊपर की ओर उठा और दीवाल से बाहर निकलता हुआ है एवं पिछला भाग अन्दर दीवाल में अच्छी तरह से घुसा हुआ है और आकार सर्प के अधोभाग जैसा है । अग्रभाग का संस्थान सर्धि के समान है । वे वज्ररत्नों से बने हुए हैं । बड़े-बड़े गजदन्तों जैसे ये नागदन्त अतीव स्वच्छ, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं । इन नागदन्तों पर काले सूत्र से गूंथी हुई तथा नीले, लाल, पीले और सफेद डोरे से गूंथी हुई लम्बी-लम्बी मालायें लटक रही हैं । वे मालायें सोने के झूमकों और सोने के पत्तों से परिमंडित तथा नाना प्रकार के मणि-रत्नों से रचित विविध प्रकार के शोभनीक हारों के अभ्युदय यावत् अपनी श्री से अतीव-अतीव उपशोभित है | इन नागदन्तों के भी ऊपर अन्य-दूसरी सोलह-सोलह नागदन्तों की पंक्तियाँ कही हैं । हे आयुष्मन् श्रमणो ! पूर्ववर्णित नागदन्तों की तरह ये नागदन्त भी यावत् विशाल गजदन्तों के समान हैं । इन नागदन्तों पर बहुत से रजतमय शीके लटके हैं । इन प्रत्येक रजतमय शीकों में वैडूर्य-मणियों से बनी हुई धूप-घटिकायें रखी हैं । ये धूपघटिकायें काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुष्क, तुरुष्क और सुगन्धित धूप के जलने से उत्पन्न मघमघाती मनमोहक सुगन्ध के उड़ने एवं उत्तम सुरभि-गन्ध की अधिकता से गन्धवर्तिका के जैसी प्रतीत होती हैं तथा सर्वोत्तम, मनोज्ञ, मनोहर, नासिका और मन को तृप्तिप्रदायक गन्ध से उस प्रदेश को सब तरफ से अधिवासित करती हुई यावत् अपनी श्री से अतीव-अतीव शोभायमान हो रही हैं । [२९] उन द्वारों की दोनों बाजुओं की निशीधिकाओं में सोलह-सोलह पुतलियों की पंक्तियाँ हैं । ये पुतलियाँ विविध प्रकार की लीलायें करती हुई, सुप्रतिष्ठित सब प्रकार के आभूषणों से श्रृंगारित, अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे परिधानों एवं मालाओं से शोभायमान, मुट्ठी प्रमाण काटि प्रदेश वाली, शिर पर ऊँचा अंबाडा बांधे हुए और समश्रेणि में स्थित हैं | वे सहवर्ती, अभ्युन्नत, परिपुष्ट, कठोर, भरावदार-स्थूल गोलाकार पयोधरों वाली, लालिमा युक्त

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