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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
कर मृत्यु के बाद सौधर्म देवलोक में उत्पन्न होगा । भगवन् ! देवलोक की आयु तथा स्थिति पूर्ण हो जाने के बाद वह कहां जायेगा ? कहां उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जाएगा । वहाँ उत्तम कुल में जन्म लेगा । यावत् सिद्ध बुद्ध सब दुःखों का अन्त करेगा । हे जम्बू ! इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःखविपाकनामक दशम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है । भगवन् ! आपका यह कथन सत्य है । अध्ययन-१० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
श्रुतस्कन्ध-१ पूर्ण
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॥ श्रुतस्कन्ध-२ ॥ [३५] उस काल तथा उस समय राजगृह नगर में गुणशीलनामक चैत्य में श्रीसुधर्मा स्वामी पधारे । उनकी पर्युपासना- में संलग्न रहे हुए श्री जम्बू स्वामी ने प्रश्न किया-प्रभो ! यावत् मोक्ष रूप परम स्थिति को संप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने यदि दुःखविपाक का यह अर्थ प्रतिपादित किया, तो यावत् सुखविपाक का क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ? अनगार श्रीसुधर्मा स्वामी बोले हे जम्बू ! यावत् निर्वाणप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने सुख-विपाक के दस अध्ययन प्रतिपादित किये हैं । वे इस प्रकार हैं
[३६] सुबाहु, भद्रनंदी, सुजात, सुवासव, जिनदास, धनपति, महाबल, भद्रनंदी, महचंद्र और वरदत्त ।
( अध्ययन-१ सुबाहुकुमार ) [३७] हे भदन्त ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दश अध्ययन प्रतिपादित किये है तो हे भगवन् ! सुख-विपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? श्रीसुधर्मा स्वामी ने श्रीजम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहा-हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में हस्तिशीर्ष नाम का एक बड़ा ऋद्धभवनादि के आधिक्य से युक्त, स्तिमित-स्वचक्र-परचक्र के भय से मुक्त, समृद्ध-धन-धान्यादि से परिपूर्ण नगर था । उस नगर के बाहर ईशान कोण में सब ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले फलपुष्पादि से युक्त पुष्पकरण्डक नाम का एक उद्यान था । उस उद्यान में कृतवनमाल-प्रिय नामक यक्ष का यक्षायतन था । जो दिव्य-प्रधान एवं सुन्दर था । वहां अदीनशत्रु राजा था, जो कि राजाओं में हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् था । अदीनशत्रु नरेश के अन्तःपुर में धारिणीप्रमुख एक हजार रानियां थीं ।
तदनन्तर एक समय राजकुलउचित वासभवन में शयन करती हठ धारिणी देवी ने स्वप्न में सिंह को देखा । मेघकुमार के समान सुबाहु के जन्म आदि का वर्णन भी जानलेना । यावत् सुबाहुकुमार सांसारिक कामभोगों का उपभोग करने में समर्थ हो गया । तब सुबाहुकुमार के माता-पिता ने उसे बहत्तर कलाओं में कुशल तथा भोग भोगने में समर्थ हुआ जाना, और उसके माता-पिता जिस प्रकार भूषणों में मुकुट सर्वोत्तम होता है, उसी प्रकार महलों में उत्तम पांच सौ महलों का निर्माण करवाया जो अत्यन्त ऊंचे, भव्य एवं सुन्दर थे । उन प्रासादों के