Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 168
________________ १६७ औपपातिक १० शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार - सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती, प्रतिघात, व्यावृत्तछद्मा, जिन, ज्ञायक, तीर्ण, तारक, मुक्त, मोचक, बुद्ध, बोधक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव, अचल, निरुपद्रव, अन्तरहित, क्षयरहित, बाधारहित, अपुनरावर्तन, अर्हत्, रागादिविजेता, जिन, केवली, सात हाथ की दैहिक ऊँचाई से युक्त, समचौरस संस्थान - संस्थित, वज्र - ऋषभ नाराच संहनन, देह के अन्तर्वर्ती पवन के उचित वेग- गतिशीलता से युक्त, कंक पक्षी की तरह निर्दोष गुदाशय युक्त, कबूतर की तरह पाचन शक्ति युक्त, उनका अपान-स्थान उसी तरह निर्लेप था, जैसे पक्षी का, पीठ और पेट के नीच के दोनों पार्श्व तथा जंघाएं सुपरिणत- सुन्दर - सुगठित थीं, उनका मुख पद्म तथा उत्पल जैसे सुरभिमय निःश्वास से युक्त था, उत्तम त्वचा युक्त, नीरोग, उत्तम, प्रशस्त, अत्यन्त श्वेत मांस युक्त, जल्ल, मल्ल, मैल, धब्बे, स्वेद तथा रज-दोष वर्जित शरीर युक्त, अतएव निरुपलेप दीप्ति से उद्योतित प्रत्येक अंगयुक्त, अत्यधिक सघन, सुबद्ध स्नायुबंध सहित, उत्तम लक्षणमय पर्वत के शिखर के समान उन्नत उनका मस्तक था । बारीक रेशों से भरे सेमल के फल फटने से निकलते हुए रेशों जैसे कोमल विशद, प्रशस्त, सूक्ष्म, श्लक्ष्ण, सुरभित, सुन्दर, भुजमोचक, नीलम, भींग, नील, कज्जल, प्रहृष्ट, भ्रमरवृन्द जैसे चमकीले काले, घने, घुंघराले, छल्लेदार केश उनके मस्तक पर थे, जिस त्वचा पर उनके बाल उगे हुए थे, वह अनार के फूल तथा सोने के समान दीप्तिमय, लाल, निर्मल और चिकनी थी, उनका उत्तमांग सघन, और छत्राकार था, उनका ललाट निर्व्रण- फोड़े-फुन्सी आदि के घाव से रहित, समतल तथा सुन्दर एवं शुद्ध अर्द्ध चन्द्र के सदृश भव्य था, मुख पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य था, कान मुख के समान सुन्दर रूप में संयुक्त और प्रमाणोपेत थे, बड़े सुहावने लगते थे, उनके कपोल मांसलल और परिपुष्ट थे, उनकी भौहे कुछ खींचे हुए धनुष के समान सुन्दर काले बादल की रेखा के समान कृश, काली एवं स्निग्ध थीं, उनके नयन खिले हुए पुंडरीक समान थे, उनकी आँखें पद्म की तरह विकसित, धवल तथा पत्रल थीं, नासिका गरुड़ की तरह, सीधी और उन्नत थी, बिम्ब फल के सदृश उनके होठ थे, उनके दांतों की श्रेणी निष्कलंक चन्द्रमा के टुकड़े, निर्मल से भी निर्मल शंख, गाय के दूध, फेन, कुंद के फूल, जलकण और कमल - नाल के समान सफेद थी, दाँत अखंड, परिपूर्ण, अस्फुटित, टूट फूट रहित, अविरल, सुस्निग्ध, आभामय, सुजात, थे, अनेक दाँत एक दन्तश्रेणी की तरह प्रतीत होते थे, जिह्वा और तालु अग्नि में तपाये हुए और जल से धोये हुए स्वर्ण के समान लाल थे, उनकी दाढ़ी-मूंछ अवस्थित, सुविभक्त बहुत हलकी-सी तथा अद्भुत सुन्दरता लिए हुए थी, ठुड्डी मांसल, सुगठित, प्रशस्त तथा चीते की तरह विपुल थी, ग्रीवा, चार अंगुल प्रमाण तथा उत्तम शंख के समान त्रिबलियुक्त एवं उन्नत थी । उनके कन्धे प्रबल भैंसे, सूअर, सिंह, चीते, सांड के तथा उत्तम हाथी के कन्धों जैसे परिपूर्ण एवं विस्तीर्ण थे, उनकी भुजाएं युग- गाड़ी के यूप की तरह गोल और लम्बी, सुदृढ़, देखने में आनन्दप्रद, सुपुष्ट कलाइयों से युक्त, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, घन, स्थिर, स्नायुओं से यथावत् रूप में सुबद्ध तथा नगर की अर्गला समान गोलाई लिए हुए थीं, इच्छित वस्तु प्राप्त करने के लिए नागराज के फैले हुए विशाल शरीर की तरह उनके दीर्घ बाहु थे, उनके हाथ भाग उन्नत, कोमल, मांसल तथा सुगठित थे, शुभ लक्षणों से युक्त थे, अंगुलियाँ मिलाने पर उनमें छिद्र दिखाई नहीं देते थे, उनके तल ललाई लिए हुए, पतली, उजली, रुचिर, रुचिकर, स्निग्ध सुकोमल थीं, उनकी हथेली में चन्द्र, सूर्य, शंख, चक्र, दक्षिणावर्त्त स्वस्तिक

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