Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ १५८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद पारणा करते हुए विचरण कर रहे थे । एक बार सुदत्त अनगार मास-क्षमण पारणे के दिन प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करते हैं, यावत् गौतम स्वामी समान वैसे ही वे धर्मघोष स्थविर से पूछते हैं, यावत् भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए सुमुख गाथापति के घर में प्रवेश करते हैं । तदनन्तर वह सुमुख गाथापति सुदत्त अनगार को आते हुए देखकर अत्यन्त हर्षित और प्रसन्न होकर आसन से उठता है । पाद-पीठ से नीचे उतरता है । पादुकाओं को छोड़ता है । एक शाटिक उत्तरासंग करता है, उत्तरासंग करने के अनन्तर सुदत्त अनगार के सत्कार के लिए सात-आठ कदम सामने जाता है । तीन बार प्रदक्षिणा करता है, वंदन करता है, नमस्कार करके जहां अपना भक्तगृह था वहां आकर अपने हाथ से विपुल अशन पान का-आहार का दान दूंगा, इस विचार से अत्यन्त प्रसन्नता को प्राप्त होता है । वह देते समय भी प्रसन्न होता है और आहारदान के पश्चात् भी प्रसन्नता का अनुभव करता है । __ तदनन्तर उस सुमुख गाथापति के शुद्ध द्रव्य से तथा त्रिविध, त्रिकरण शुद्धि से स्वाभाविक उदारता सरलता एवं निर्दोषता से सुदत्त अनगार के प्रतिलम्भित होने पर आहार के दान से अत्यन्त प्रसन्नता को प्राप्त हुए सुमुख गाथापति ने संसार को बहुत कम कर दिया और मनुष्य आयुष्य का बन्ध किया । उसके घर में सुवर्णवृष्टि, पांच वर्णो के फूलों की वर्षा, वस्त्रों का उत्क्षेप, देवदुन्दभियों का वजना तथा आकाश में 'अहोदान' इस दिव्य उद्घोषणा का होना-ये पाँच दिव्य प्रकट हए । हस्तिनापुर के त्रिपथ यावत् सामान्य मार्गों में अनेक मनुष्य एकत्रित होकर आपस में एक दूसरे से कहते थे-हे देवानुप्रियो ! धन्य है सुमुख गाथापति ! सुमुख गाथापति सुलक्षण है, कृतार्थ है, उसने जन्म और जीवन का सुफल प्राप्त किया है जिसे इस प्रकार की यह माननीय ऋद्धि प्राप्त हुई । धन्य है सुमुख गाथापति ! तदनन्तर वह सुमुख गाथापति सैकड़ों वर्षों की आयु का उपभोग कर काल-मास में काल करके इसी हस्तिशीर्षक नगर में अदीनशत्रु राजा की धारिणी देवी की कुक्षि में पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ । तत्पश्चात् वह धारिणी देवी किञ्चित् सोई और किञ्चित् जागती हुई स्वप्न में सिंह को देखती है । शेष वर्णन पूर्ववत् जानना । यावत् उन्न प्रासादों में मानव सम्बन्धी उदार भोगों का यथेष्ट उपभोग करता विचरता है । हे गौतम ! सुबाहुकुमार को उपर्युक्त महादान के प्रभाव से इस तरह की मानव-समृद्धि उपलब्ध तथा प्राप्त हुई और उसके समक्ष समुपस्थित गौतम-प्रभो ! सुबाहुकुमार आपश्री के चरणों में मुण्डित होकर, गृहस्थावास को त्याग कर अनगार धर्म को ग्रहण करने में समर्थ है ? हाँ गौतम ! है । तदनन्तर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना व नमस्कार करके संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विहरण करने लगे । तदनन्तर श्रमम भगवान् महावीर ने किसी अन्य समय हस्तिशीर्ष नगर के पुष्पकरण्डक उद्यानगत कृतवनमाल नामक यक्षायतन से विहार किया और विहार करके अन्य देशों में विचरने लगे । इधर सुबाहकुमार श्रमणोपासक हो गया । जीव अजीव आदि तत्वों का मर्मज्ञ यावत् आहारादि के दान-जन्य लाभ को प्राप्त करता हुआ समय व्यतीत करने लगा। तत्पश्चात् किसी समय वह सुबाहकुमार चतुर्दशी, अष्टमी, उद्दिष्ट-अमावस्या और पूर्णमासी, इन तिथियों में जहाँ पौषधशाला थी-वहाँ आता है । आकर पौषधशाला का प्रमार्जन करता है, उच्चारप्रस्रवणभूमि की प्रतिलेखना करता है । दर्भसंस्तार बिछाता है । दर्भ

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274