________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
डाट-डपट से तथा गर्दन पकड़ कर धक्के देने से उनका चित्त खेदखिन्न होता है । उन चोरों को नारकावास सरीखे कारागार में जबर्दस्ती घुसेड़ दिया जाता है । वहाँ भी वे कारागार के अधिकारियों द्वारा प्रहारों, यातनाओं, तर्जनाओं, कटुवचनों एवं भयोत्पादक वचनों से भयभीत होकर दुःखी बने रहते हैं । उनके वस्त्र छीन लिये जाते हैं । वहाँ उनको मैले फटे वस्त्र मिलते हैं । बार-बार उन कैदियों से लांच माँगने में तत्पर कारागार के रक्षकों द्वारा अनेक प्रकार के
७६
धनों में वे बांध दिये जाते हैं । चोरों को जिन विविध बन्धनों से बांधा जाता है, वे बन्धन कौन-से हैं ? हडिया काष्ठमय बेड़ी, लोहमय बेड़ी, बालों से बनी हुई रस्सी, एक विशेष प्रकार का काष्ठ, चर्मनिर्मित मोटे रस्से, लोहे की सांकल, हथकड़ी, चमड़े का पट्टा, पैर बांधने की रस्सी तथा निष्कोडन, इन सब तथा इसी प्रकार के अन्य अन्य दुःखों को समुत्पन्न करने वाले कारागार के साधनों द्वारा बांधे जाते है; इतना ही नहीं
उन पापी चोर कैदियों के शरीर को सिकोड़ कर और मोड़ कर जकड़ दिया जाता है। कोठरी में डाल कर किवाड़ बंद कर देना, लोहे के पींजरे में डालना, भूमिगृह में बंद करना, कूप में उतारना, बंदीघर के सींखचों से बांध देना, अंगों में कीलें ठोकना, जूवा उनके कंधे पर रखना, गाड़ी के पहिये के साथ बांध देना, बाहों जाँघों और सिर को कस कर बांधना, खंभे से चिपटाना, पैरों को ऊपर और मस्तक को नीचे की ओर करके बांधना, इत्यादि बन्धन से बांधकर अधर्मी जेल - अधिकारियों द्वारा चोर बाँधे जाते हैं । गर्दन नीची करके, छाती और सिर कस कर बांध दिया जाता है तब वे निश्वास छोड़ते हैं । उनकी छाती धक् धक् करती है । उनके अंग मोड़े जाते हैं । वे ठंडी श्वासें छोड़ते हैं ।
|
चमड़े की रस्सी से उनके मस्तक बांध देते हैं, दोनों जंघाओं को चीर देते हैं, जोड़ों को काष्ठमय यन्त्र से बांधा जाता है । तपाई हुई लोही की सलाइयाँ एवं सूइयाँ शरीर में चुभोई जाती हैं । शरीर छीला जाता है । मर्मस्थलों को पीड़ित किया जाता है । क्षार कटुक और तीखे पदार्थ उनके कोमल अंगों पर छिड़के जाते हैं । इस प्रकार पीड़ा पहुँचाने के सैकड़ों कारण वे प्राप्त करते हैं । छाती पर काष्ठ रखकर जोर से दबाने से उनकी हड्डियाँ भग्न हो जाती हैं। मछली पकड़ने के कांटे के समान घातक काले लोहे के नोकदार डंडे छाती, पेट, गुदा और पीठ में भोंक देने से वे अत्यन्त पीड़ा अनुभव करते हैं । ऐसी-ऐसी यातनाएँ से अदत्तादान करनेवालों का हृदय मथ दिया जाता है और उनके अंग-प्रत्यंग चूर-चूर हो जाते हैं । कोई-कोई अपराध किये बिना ही वैरी बने हुए कर्मचारी यमदूतों के समान मार-पीट करते हैं। वे अभागे कारागार में थप्पड़ों, मुक्कों, चर्मपट्टों, लोहे के कुशों, लोहमय तीक्ष्ण शस्त्रों, चाबुकों, लातों, मोटे रस्सों और बेतों के सैकड़ों प्रहारों से अंग-अंग को ताड़ना देकर पीड़ित किये जाते हैं । लटकती हुई चमड़ी पर हुए घावों की वेदना से उन बेचारे चोरों का मन उदास हो जाता है । बेड़ियों को पहनाये रखने के कारण उनके अंग सिकुड़ जाते हैं और शिथिल पड़ जाते हैं । यहाँ तक कि उनका मल-मूत्रत्याग भी रोक दिया जाता है, उनका बोलना बंद कर दिया जाता है । वे इधर-उधर संचरण नहीं कर पाते । ये और इसी प्रकार की अन्यान्य वेदनाएँ वे अदत्तादान का पाप करने वाले पापी प्राप्त करते हैं ।
जिन्होंने अपनी इन्द्रियों का दमन नहीं किया है- वशीभूत हो रहे हैं, जो तीव्र आसक्ति के कारण मूढ - बन गए हैं, परकीय धन में लुब्ध हैं, जो स्पर्शनेन्द्रिय के विषय में तीव्र रूप