________________
विपाकश्रुत- १/३/२३
१३३
आऊँगा ।' तत्पश्चात् अभग्नसेन ने उनका उचित सत्कार - सम्मान करके उन्हें विदा किया । तदनन्तरमित्र, ज्ञाति व स्वजन - परिजनों से घिरा हुआ वह अभग्रसेन चोरसेनापति स्नानादि से निवृत्त हो यावत् अशुभ स्वप्न का फल विनष्ट करने के लिये प्रायश्चित्त के रूप में मस्तक पर तिलक आदि माङ्गलिक अनुष्ठान करके समस्त आभूषणों से अलंकृत हो शालाटवी चोरपल्ली से निकलकर जहाँ पुरिमताल नगर था और महाबल नरेश थे, वहाँ पर आता है । आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर दश नखोंवाली अञ्जलि करके महाबल राजा को 'जयविजय शब्द से बधाई देकर महार्थ यावत् राजा के योग्य प्राभृत- भेंट अर्पण करता है । तदनन्तर महाबल राजा उस अभग्ग्रसेन चोरसेनापति द्वारा अर्पित किए गए उपहार को स्वीकार करके उसे सत्कार-सम्मानपूर्वक-अपने पास से विदा करता हुआ कूटाकारशाला में उसे रहने के लिये स्थान देता है । तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति महाबल राजा के द्वारा सत्कारपूर्वक विसर्जित होकर कूटाकारशाला में आता हैं और वहाँ पर ठहरता है ।
इसके बाद महाबल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा- तुम लोग विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम पुरुष, वस्त्र, गंधमाला अलंकार एवं सुरा आदि मदिराओं को तैयार कराओ और उन्हें कूटाकार - शाला में चोरसेनापति अभग्नसेन की सेवा में पहुंचा दो । कौटुम्बिक पुरुषों ने हाथ जोड़कर यावत् अञ्जलि करके राजा की आज्ञा स्वीकार की और तदनुसार विपुल अशनादिक सामग्री वहाँ पहुँचा दी । तदनन्तर अभग्नसेन चोरसेनापति स्नानादि से निवृत्त हो, समस्त आभूषणों को पहिनकर अपने बहुत से मित्रों व ज्ञाति जनों आदि के साथ उस विपुल अशनादिक तथा पंचविध मदिराओं का सम्यक् आस्वादन विस्वादन करता हुआ प्रमत्त- बेखबर होकर विहरण करने लगा ।
पश्चात् महाबल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रियो ! तुम लोग जाओ और जाकर पुरिमताल नगर के दरवाजों को बन्द कर दो और अभग्नसेन चोरसेनापति को जीवित स्थिति में ही पकड़ लो और पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो !' तदनन्तर कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा की यह आज्ञा हाथ जोड़कर यावत् दश नखोंवाली अञ्जलि करके शिरोधार्य की और पुरिमतालनगर के द्वारों को बन्द करके चोरसेनापति अभग्नसेन को जीवित पकड़ कर महाबल नरेश के समक्ष उपस्थित किया । तत्पश्चात् महाबल नरेश ने अभग्नसेन चोरसेनापति को इस विधि से वध करने की आज्ञा प्रदान कर दी । हे गौतम ! इस प्रकार निश्चित रूप से वह चोरसेनापति अभग्नसेन पूर्वोपार्जित पापकर्मों के नरक तुल्य विपाकोदय के रूप में घोर वेदना का अनुभव कर रहा है ।
अहो भगवन् ! वह अभग्नसेन चोरसेनापति कालावसर में काल करके कहाँ जाएगा ? तथा कहाँ उत्पन्न होगा ? हे गौतम! अभग्नसेन चोरसेनापति ३७ वर्ष की परम आयुष्य को भोगकर आज ही त्रिभागावशेष दिन में सूली पर चढ़ाये जाने से काल करके रत्नप्रभानामक प्रथम नरक में नारकी रूप से, जिसकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, उत्पन्न होगा । फिर प्रथम नरक से निकलकर प्रथम अध्ययन में प्रतिपादित मृगापुत्र के संसारभ्रमण की तरह इसका भी परिभ्रमण होगा, यावत् पृथ्वीकाय, अप्काय, वायुकाय तेजस्काय आदि में लाखों बार उत्पन्न होगा । वहाँ से निकलकर बनारस नगरी में शूकर के रूप में उत्पन्न होगा । वहाँ शूकर के शिकारियों द्वारा उसका घात किया जाएगा । तत्पश्चात् उसी बनारस नगरी के