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विपाकश्रुत- १/३/२२
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महाबल नरेश उन जनपदवासियों के पास से उक्त वृत्तान्त को सुनकर रुष्ट, कुपित और क्रोध से तमतमा उठे । उसके अनुरूप क्रोध से दांत पीसते हुए भोहें चढ़ाकर कोतवाल को बुलाते हैं और कहते हैं- देवानुप्रिय ! तुम जाओ और शालाटवी नामक चोरपल्ली को नष्ट-भ्रष्ट कर दो और उसके चोरसेनापति अभग्रसेन को जीवित पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो । महाबल राजा की इस आज्ञा को दण्डनायक विनयपूर्वक स्वीकार करता हुआ, दृढ़ बंधनों से बंधे हुए लोहमय कुलक आदि से युक्त कवच को धारण कर आयुधों और प्रहरणों से युक्त अनेक पुरुषों को साथ में लेकर, हाथों में फलक ढाल बांधे हुए यावत् क्षिप्रतूर्य के बजाने से महान् उत्कृष्ट महाध्वनि एवं सिंहनाद आदि के द्वारा समुद्र की सी गर्जना करते हुए, आकाश को विदीर्ण करते हुए पुरिमताल नगर के मध्य से निकल कर शालाटवी चोरपल्ली की ओर जाने का निश्चय करता है ।
तदनन्तर अग्रसेन चोरसेनापति के गुप्तचरों को इस वृत्तान्त का पता लगा । वे सालाटवी चोरपल्ली में, जहां अभग्रसेन चोरसेनापति था, आये और दोनों हाथ जोड़कर और मस्तक पर दस नखोंवाली अंजलि करके अभग्नसेन से इस प्रकार बोले- हे देवानुप्रिय ! पुरिमतालनगर में महाबल राजा ने महान् सुभटों के समुदायों के साथ दण्डनायक - कोतवाल को बुलाकर आज्ञा दी है कि - 'तुम लोग शीघ्र जाओ, जाकर सालाटवी चोरपल्ली को नष्ट-भ्रष्ट कर दो और उसके सेनापति अभग्रसेन को जीवित पकड़ लो और पकड़कर मेरे सामने उपस्थित करो ।' राजा की आज्ञा को शिरोधार्य करके कोतवाल योद्धाओं के समूह के साथ सालाटवी चोरपल्ली में आने के लिये रवाना हो चुका है । तदनन्तर उस अभग्नसेन सेनापति ने अपने गुप्तचरों की बातों को सुनकर तथा विचारकर अपने पांच सौ चोरों को बुलाकर कहा- देवानुप्रियो ! पुरिमताल नगर के महाबल राजा ने आज्ञा दी है कि यावत् दण्डनायक ने चोरपल्ली पर आक्रमण करने का तथा मुझे जीवित पकड़ने को यहाँ आने का निश्चय कर लिया है, अतः उस दण्डनायक को सालाटवी चोर-पल्ली पहुँचने से पहिले ही मार्ग में रोक देना हमारे लिये योग्य है । अभग्रसेन सेनापति के इस परामर्श को 'तथेति' ऐसा कहकर पांच सौ चोरों ने स्वीकार किया ।
तदनन्तर अग्रसेन चोर सेनापति ने अशन, पान, खादिम और स्वादिम- अनेक प्रकार की स्वादिष्ट भोजनसामग्री तैयार कराई तथा पांच सौ चोरों के साथ स्नानादि क्रिया कर दुःस्वप्नादि के फलों को निष्फल करने के लिये मस्तक पर तिलक तथा अन्य माङ्गलिक कृत्य करके भोजनशाला में उस विपुल अशनादि वस्तुओं तथा पांच प्रकार की मदिराओं का यथारुचि आस्वादन, विस्वादन आदि किया । भोजन के पश्चात् योग्य स्थान पर आचमन किया, मुख के लेपादि को दूर कर, परम शुद्ध होकर, पांच सौ चोरों के साथ आर्द्रचर्म पर आरोहण किया । दृढ़बन्धनों से बंधे हुए, लोहमय कसूलक आदि से युक्त कवच को धारण करके यावत् आयुधों और प्रहरणों से सुसज्जित होकर हाथों में ढालें बांधकर यावत् महान् उत्कृष्ट, सिंहनाद आदि शब्दों के द्वारा समुद्र के समान गर्जन करते हुए एवं आकाशमण्डल को शब्दायमान करते हुए अभग्नसेन ने सालाटवी चोरपल्ली से मध्याह्न के समय प्रस्थान किया । खाद्य प्रदार्थों को साथ लेकर विषम और दुर्ग-गहन वन में ठहरकर वह दण्डनायक की प्रतीक्षा करने लगा ।
उसके बाद वह कोतवाल जहाँ अभग्रसेन चोरसेनापति था, वहाँ पर आता है, और