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विपाकश्रुत-१/२/१३
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से निर्मित सुन्दर मनोहर, मन को प्रसन्न करने वाली एक विशाल गोशाला थी । वहाँ पर नगर के अनेक सनाथ और अनाथ, ऐसी नगर की गायें, बैल, नागरिक छोटी गायें, भैंसे, नगर के सांड. जिन्हें प्रचर मात्रा में घास-पानी मिलता था, भय तथा उपसगादि से रहित होकर परम सुखपूर्वक निवास करते थे । उस हस्तिनापुर नगर में भीम नामक एक कूटग्राह रहता था । वह स्वभाव से ही अधर्मी व कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था । उस भीम कूटग्राह की उत्पला नामक भार्या थी जो अहीन पंचेन्द्रिय वाली थी । किसी समय वह उत्पला गर्भवती हुई । उस उत्पला नाम की कूटग्राह की पत्नी को पूरे तीन मास के पश्चात् इस प्रकार का दोहद उत्पन्न
हुआ
__ वे माताएँ धन्य हैं, पुण्यवती हैं, कृतार्थ हैं, सुलक्षणा हैं, उनका ऐश्वर्य सफल है, उनका मनुष्यजन्म और जीवन भी सार्थक है, जो अनेक अनाथ या सनाथ नागरिक पशुओं यावत् वृषभों के ऊधस्, स्तन, वृषण, पूंछ, ककुद्, स्कन्ध, कर्ण, नेत्र, नासिका, जीभ, ओष्ठ, कम्बल, जो कि शूल्य, तलित, भृष्ट, शुष्क, और लवणसंस्कृत मांस के साथ सुरा, मधु मेरक, सीधु, प्रसन्ना, इन सब मद्यों का सामान्य व विशेष रूप से आस्वादन, विस्वादन, परिभाजन तथा परिभोग करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं । काश ! मैं भी अपने दोहद को इसी प्रकार पूर्ण करूँ । इस विचार के अनन्तर उस दोहद के पूर्ण न होने से वह उत्पला नामक कूटग्राह की पत्नी सूखने लगी, भूखे व्यक्त के समान दीखने लगी, मांस रहित-अस्थि-शेष हो गयी, रोगिणी व रोगी के समान शिथिल शरीरवाली, निस्तेज, दीन तथा चिन्तातुर मुखवाली हो गयी । उसका बदन फीका तथा पीला पड़ गया, नेत्र तथा मुख-कमल मुझ गया, यथोचित पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माल्य-फूलों की गूंथी हुई माला-आभूषण और हार आदि का उपभोग न करनेवाली, करतल से मर्दित कमल की माला की तरह म्लान हुई कर्तव्य व अकर्तव्य के विवेक से रहित चिन्ताग्रस्त रहने लगी।
इतने में भीम नामक कूटग्राह, जहाँ पर उत्पला नाम की कूटग्राहिणी थी, वहाँ आया और उसने आर्तध्यान ध्याती हुई चिन्ताग्रस्त उत्पला को देखकर कहने लगा-'देवानुप्रिये ! तुम क्यों इस तरह शोकाकुल, हथेली पर मुख रखकर आर्तध्यान में मग्न हो रही हो ? स्वामिन ! लगभग तीन मास पूर्ण होने पर मुझे यह दोहद उत्पन्न हुआ कि वे माताएँ धन्य हैं, कि जो चतुष्पाद पशुओं के ऊधस्, स्तन आदि के लवण-संस्कृत माँस का अनेक प्रकार की मदिराओं के साथ आस्वादन करती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती हैं । उस दोहद के पूर्ण न होने से निस्तेज व हतोत्साह होकर मैं आर्तध्यान में मग्न हूँ । तदनन्तर भीम कूटग्राह ने उत्पला से कहा-देवानुप्रिये! तुम चिन्ताग्रस्त व आर्तध्यान युक्त न होओ, मैं वह सब कुछ करूँगा जिससे तुम्हारे इस दोहद की परिपूर्ति हो जायगी । इस प्रकार के इष्ट, प्रिय, कान्त, मनोहर, मनोज्ञ वचनों से उसने उस समाश्वासन दिया । तत्पश्चात् भीम कुटग्राह आधी रात्रि के समय अकेला ही दृढ कवच पहनकर, धनुष-वाण से सज्जित होकर, ग्रैवेयक धारण कर एवं आयुध प्रहरणों को लेकर अपने घर से निकला और हस्तिनापुर नगर के मध्य से होता हुआ जहाँ पर गोमण्डप था वहाँ आकर वह नागरिक पशुओं यावत् वृषभों में से कई एक के ऊधस्, कई एक के सास्ना-कम्बल आदि व कई एक के अन्यान्य अङ्गोपाङ्गों को काटता है और काटकर अपने घर आता है । आकर अपनी भार्या उत्पला को दे देता है । तदनन्तर वह उत्पला उन अनेक