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प्रश्नव्याकरण-१/४/१९
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लम्बाई के प्रमाण, विशाल, मांसल, गढे हुए श्रेष्ठ जघन को धारण करनेवाली होती हैं । उदर वज्र के समान शोभायमान, शुभ लक्षणों से सम्पन्न एवं कृश होता है । शरीर का मध्यभाग त्रिवलि से युक्त, कृश और नमित होता है । रोमराजि सीधी, एक-सी, परस्पर मिली हुई, स्वाभाविक, बारीक, काली, मुलायम, प्रशस्त, ललित, सुकुमार, कोमल और सुविभक्त होती है । नाभि गंगा नदी के भंवरों के समान, दक्षिणावर्त चक्कर वाली तरंगमाला जैसी, सूर्य की किरणों से ताजा खिले हुए और नहीं कुम्हलाए हुए कमल के समान गंभीर एवं विशाल होती है । उनकी कुक्षि अनुद्रट प्रशस्त, सुन्दर और पुष्ट होती है । उनका पार्श्वभाग सन्नत, सुगठित और संगत होता है तथा प्रमाणोपेत, उचित मात्रा में रचित, पुष्ट और रतिद होता है।
____ उनकी गात्रयष्टि अस्थि से रहित, शुद्ध स्वर्ण से निर्मित रुचक नामक आभूषण के समान निर्मल या स्वर्ण की कान्ति के समान सुगठित तथा नीरोग होती है । उनके दोनों पयोधर स्वर्ण के दो कलशों के सदृश, प्रमाणयुक्त, उन्नत, कठोर तथा मनोहर चूची वाले तथा गोलाकार होते हैं । उनकी भुजाएँ सर्प की आकृति सरीखी क्रमशः पतली गाय की पूँछ के समान गोलाकार, एक-सी, शिथिलता से रहित, सुनमित, सुभग एवं ललित होती हैं । उनके नाखून ताम्रवर्ण होते हैं । उनके अग्रहस्त मांसल होती है । उनकी अंगुलियाँ कोमल और पुष्ट होती हैं । उनकी हस्तरेखाएँ स्निग्ध होती हैं तथा चन्द्रमा, सूर्य, शंख, चक्र एवं स्वस्तिक के चिह्नों से अंकित एवं सुनिर्मित होती हैं । उनकी कांख और मलोत्सर्गस्थान पुष्ट तथा उन्नत होते हैं एवं कपोल परिपूर्ण तथा गोलाकार होते हैं । उनकी ग्रीवा चार अंगुल प्रमाण वाली एवं उत्तम शंख जैसी होती है ।
उनकी ठुड्डी मांस से पुष्ट, सुस्थिर तथा प्रशस्त होती है । उनके अधरोष्ठ अनार के खिले फूल जैसे लाल, कान्तिमय, पुष्ट, कुछ लम्बे, कुंचित और उत्तम होते हैं । उनके उत्तरोष्ठ भी सुन्दर होते हैं । उनके दांत दहीं, पत्ते पर पड़ी बूंद, कुन्द के फूल, चन्द्रमा एवं चमेली की कली के समान श्वेत वर्ण, अन्तररहित और उज्ज्वल होते हैं । वे रक्तोत्पल के समान लाल तथा कमलपत्र के सदृश कोमल तालु और जिह्वा वाली होती हैं । उनकी नासिका कनेर की कली के समान, वक्रता से रहित, आगे से ऊपर उठी, सीधी और ऊँची होती है । उनके नेत्र सूर्यविकासी कमल, चन्द्रविकासी कुमुद तथा कुवलय के पत्तों के समूह के समान, शुभ लक्षणों से प्रशस्त, कुटिलता से रहित और कमनीय होते हैं । भौहें किंचित् नमाये हुए धनुष के समान मनोहर, कृष्णवर्ण मेघमाला के समान सुन्दर, पतली, काली और चिकनी होती हैं । कपोलरेखा पुष्ट, साफ और चिकनी होती है । ललाट चार अंगुल विस्तीर्ण और सम होता है । मुख चन्द्रिकायुक्त निर्मल एवं परिपूर्ण चन्द्रमा समान गोलाकार एवं सौम्य होता है । मस्तक छत्र के सदृश उन्नत होता है । और मस्तक के केश काले, चिकने और लम्बे-लम्बे होते हैं ।
वे उत्तम बत्तीस लक्षणों से सम्पन्न होती हैं-यथा छत्र, ध्वजा, यज्ञस्तम्भ, स्तूप, दामिनी, कमण्डलु, कलश, वापी, स्वस्तिक, पताका, यव, मत्स्य, कच्छप, प्रधान रथ, मकरध्वज, वज्र, थाल, अंकुश, अष्टापद, स्थापनिका, देव, लक्ष्मी का अभिषेक, तोरण, पृथ्वी, समुद्र, श्रेष्ठभवन, श्रेष्ठ पर्वत, उत्तम दर्पण, क्रीड़ा करता हुआ हाथी, वृषभ, सिंह और चमर । उनकी चाल हंस जैसी और वाणी कोकिला के स्वर की तरह मधुर होती है । वे कमनीय कान्ति से युक्त और सभी को प्रिय लगती हैं । उनके शरीर पर न झुर्रियाँ पड़ती हैं, न उनके बाल सफेद