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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
कोई-कोई-दूसरे लोग राज्यविरुद्ध मिथ्या दोषारोपण करते हैं । यथा-चोरी न करने वाले को चोर कहते हैं । जो उदासीन है उसे लड़ाईखोर कहते हैं । जो सुशील है, उसे दुःशील कहते हैं, यह परस्त्रीगामी है, ऐसा कहकर उसे मलिन करते हैं । उस पर ऐसा आरोप लगाते हैं कि यह तो गुरुपत्नी के साथ अनुचित सम्बन्ध रखता है । यह अपने मित्र की पत्नियों का सेवन करता है । यह धर्महीन है, यह विश्वासघाती है, पाप कर्म करता है, नहीं करने योग्य कृत्य करता है, यह अगम्यगामी है, यह दुष्टात्मा है, बहुत-से पाप कर्मों को करने वाला है । इस प्रकार ईर्ष्यालु लोग मिथ्या प्रलाप करते हैं । भद्र पुरुष के परोपकार, क्षमा आदि गुणों की तथा कीर्ति, स्नेह एवं परभव की लेशमात्र परवाह न करने वाले वे असत्यवादी, असत्य भाषण करने में कुशल, दूसरों के दोषों को बताने में निरत रहते हैं । वे विचार किए बिना बोलने वाले, अक्षय दुःख के कारणभूत अत्यन्त दृढ़ कर्मबन्धनों से अपनी आत्मा को वेष्टित करते हैं ।
पराये धन में अत्यन्त आसक्त वे निक्षेप को हड़प जाते हैं तथा दूसरे को ऐसे दोषों से दूषित करते हैं जो दोष उनमें विद्यमान नहीं होते । धन के लोभी झूठी साक्षी देते हैं । वे असत्यभाषी धन के लिए, कन्या के लिए, भूमि के लिए तथा गाय-बैल आदि पशुओं के निमित्त अधोगति में ले जाने वाला असत्यभाषण करते हैं । इसके अतिरिक्त वे मृषावादी जाति, कुल, रूप एवं शील के विषय में असत्य भाषण करते हैं । मिथ्या षड्यंत्र रचने में कुशल, परकीय असद्गुणों के प्रकाशक, सद्गुणों के विनाशक, पुण्य-पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ, अन्यान्य प्रकार से भी असत्य बोलते हैं । वह असत्य माया के कारण गुणहीन है, चपलता से युक्त है, चुगलखोरी से परिपूर्ण है, परमार्थ को नष्ट करने वाला, असत्य अर्थवाला, द्वेषमय, अप्रिय, अनर्थकारी, पापकर्मों का मूल एवं मिथ्यादर्शन से युक्त है । वह कर्णकटु, सम्यग्ज्ञानशून्य, लजाहीन, लोकगर्हित, वध-बन्धन आदि रूप क्लेशों से परिपूर्ण, जरा, मृत्यु, दुःख और शोक का कारण है, अशुद्ध परिणामों के कारण संक्लेश से युक्त है । जो लोग मिथ्या अभिप्राय में सन्निविष्ट हैं, जो अविद्यमान गुणों की उदीरणा करने वाले, विद्यमान गुणों के नाशक हैं, हिंसा करके प्राणियों का उपधात करते हैं, जो असत्य भाषण करने में प्रवृत्त हैं, ऐसे लोग सावध-अकुशल, सत्-पुरुषों द्वारा गर्हित और अधर्मजनक वचनों का प्रयोग करते हैं । ऐसे मनुष्य पुण्य और पाप के स्वरूप से अनभिज्ञ होते हैं । वे पुनः अधिकरणों, शस्त्रों आदि की क्रिया में प्रवृत्ति करने वाले हैं, वे अपना और दूसरों का बहुविध से अनर्थ और विनाश करते हैं ।
इसी प्रकार घातकों को भैंसा और शूकर बतलाते हैं, वागुरिकों-को-शशक, पसय और रोहित बतलाते हैं, तीतुर, बतक और लावक तथा कपिंजल और कपोत पक्षीघातकों को बतलाते हैं, मछलियाँ, मगर और कछुआ मच्छीमारों को बतलाते हैं, शंख, अंक और कौड़ी के जीव धीवरों को बतला देते हैं, अजगर, गोणस, मंडली एवं दर्वीकर जाति के सो को तथा मुकुली-को सँपेरों को बतला देते हैं, गोधा, सेह, शल्लकी और गिरगट लुब्धकों को बतला देते हैं, गजकुल और वानरकुल के झुंड पाशिकों को बतलाते हैं, तोता, मयूर, मैना, कोकिला और हंस के कुल तथा सारस पक्षी पोषकों को बतला देते हैं । आरक्षकों को वध, बन्ध और यातना देने के उपाय बतलाते हैं । चोरों को धन, धान्य और गाय-बैल आदि पशु बतला कर चोरी