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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद एक नेत्र वाले, दोनों खराब आंखों वाले या पिशाचग्रस्त, कुष्ठ आदि व्याधियों और ज्वर आदि रोगों से पीड़ित, अल्पायुष्क, शस्त्र से वध किए जाने योग्य, अज्ञान-अशुभ लक्षणों से भरपूर शरीर वाले, दुर्बल, अप्रशस्त संहनन वाले, बेडौल अंगोपांगों वाले, खराब संस्थान वाले, कुरूप, दीन, हीन, सत्त्वविहीन, सुख से सदा वंचित रहने वाले और अशुभ दुःखों के भाजन होते हैं।
इस प्रकार पापकर्म करने वाले प्राणी नरक और तिर्यंच योनि में तथा कुमानुष-अवस्था में भटकते हए अनन्त दुःख प्राप्त करते हैं । यह प्राणवध का फलविपाक है, जो इहलोक और परलोक में भोगना पड़ता है । यह फलविपाक अल्प सुख किन्तु अत्यधिक दुःख वाला है । महान् भय का जनक है और अतीव गाढ़ कर्मरूपी रज से युक्त है । अत्यन्त दारुण है, कठोर है और असाता को उत्पन्न करने वाला है । हजारों वर्षों में इससे छुटकारा मिलता है । किन्तु इसे भोगे विना छुटकारा नहीं मिलता । हिंसा का यह फलविपाक ज्ञातकुल-नन्दन महात्मा महावीर नामक जिनेन्द्रदेव ने कहा है । यह प्राणवध चण्ड, रौद्र, क्षुद्र और अनार्य जनों द्वारा आचरणीय है | यह घृणारहित, नृशंस, महाभयों का कारण, भयानक, ६सजनक और अन्यायरूप है, यह उद्वेगजनक, दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला, धर्महीन, स्नेहपिपासा से शून्य, करुणाहीन है । इसका अन्तिम परिणाम नरक में गमन करना है, अर्थात् यह नरकगति में जाने का कारण है । मोहरूपी महाभय को बढ़ाने वाला और मरण के कारण उत्पन्न होने वाली दीनता का जनक है । अध्ययन-१ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(अध्ययन-२-आस्रवद्वार-२) [१ जम्बू ! दूसरा (आस्त्रवद्वार) अलीकवचन है । यह गुण-गौरव से रहित, हल्के, उतावले और चंचल लोगों द्वारा बोला जाता है, भय उत्पन्न करने वाला, दुःखोत्पादक, अपयशकारी एवं वैर उत्पन्न करने वाला है । यह अरति, रति, राग, द्वेष और मानसिक संक्लेश को देने वाला है | शुभ फल से रहित है । धूर्तता एवं अविश्वसनीय वचनों की प्रचुरता वाला है । नीच जन इसका सेवन करते हैं | यह नृशंस, क्रूर अथवा निन्दित है । अप्रतीतिकारक है । सत्पुरुषों द्वारा निन्दित है । दूसरों को पीड़ा उत्पन्न करने वाला है । उत्कृष्ट कृष्णलेश्या से सहित है । यह दुर्गतियों में निपात को बढ़ाने वाला है । भव करने वाला है । यह चिरपरिचित है । निरन्तर साथ रहने वाला है और बड़ी कठिनाई से इसका अन्त होता है ।
[१०] उस असत्य के गुणनिष्पन्न तीस नाम हैं । अलीक, शठ, अन्याय्य, माया-मृषा, असत्क, कूटकपटअवस्तुक, निरर्थकअपार्थक, विद्वेष-गर्हणीय, अनृजुक, कल्कना, वञ्चना, मिथ्यापश्चात्कृत, साति, उच्छन्न, उत्कूल, आर्त, अभ्याख्यान, किल्विष, वलय, गहन, मन्मन, नूम, निकृति, अप्रत्यय, असमय, असत्यसंधत्व, विपक्ष, अपधीक, उपधि-अशुद्ध और अपलोप। सावध अलीक वचनयोग के उल्लिखित तीस नामों के अतिरिक्त अन्य भी अनेक नाम हैं ।
[११] यह असत्य कितनेक पापी, असंयत, अविरत, कपट के कारण कुटिल, कटुक और चंचल चित्तवाले, क्रुद्ध, लुब्ध, भय उत्पन्न करनेवाले, हँसी करनेवाले, झूठी गवाही देने वाले, चोर, गुप्तचर, खण्डरक्ष, जुआरी, गिरवी रखने वाले, कपट से किसी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहनेवाले, कुलिंगी-वेषधारी, छल करनेवाले, वणिक्, खोटा नापने-तोलनेवाले, नकली