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अन्तकृद्दशा-६/३/२७
छह गोष्ठिक पुरुष मुद्गरपाणि यक्ष के यक्षायतन में आकर आमोद-प्रमोद करने लगे ।
उधर अर्जुनमाली अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ फूल-संग्रह करके उनमें से कुछ उत्तम फूल छांटकर उनसे नित्य-नियम अनुसार मुद्गरपाणि यक्ष की पूजा करने के लिये यक्षायतन की ओर चला । उन छह गोष्ठिक पुरुषों ने अर्जुनमाली को बन्धुमती भार्या के साथ यक्षायतन की ओर आते देखा । परस्पर विचार करके निश्चय किया-"अर्जुनमाली अपनी बन्धुमती भार्या के साथ इधर ही आ रहा है । हम लोगों के लिये यह उत्तम अवसर है कि अर्जुनमाली को तो औंधी मुश्कियों से बलपूर्वक बांधकर एक और पटक दें और बन्धुमती के साथ खूब काम क्रीडा करें ।" यह निश्चय करके वे छहों उस यक्षायतन के किवाड़ों के पीछे छिप कर निश्चल खड़े हो गये और उन दोनों के यक्षायतन के भीतर प्रविष्ट होने की श्वास रोककर प्रतीक्षा करने लगे । इधर अर्जुनमाली अपनी बन्धुमती भार्या के साथ यक्षायतन में प्रविष्ट हुआ और यक्ष पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया । फिर चुने हुए उत्तमोत्तम फूल उस पर चढ़ाकर दोनों घुटने भूमि पर टेककर प्रणाम किया । उसी समय शीघ्रता से उन छह गोष्ठिक पुरुषों ने किवाड़ों के पीछे से निकल कर अर्जुनमाली को पकड़ लिया और उसकी औधी मुश्कें बांधकर उसे एक
ओर पटक दिया । फिर उसकी पत्नी बन्धुमती मालिन के साथ विविधप्रकार से कामक्रीडा करने लगे ।
यह देखकर अर्जुनमाली के मन में यह विचार आया-“मैं अपने बचपन से ही भगवान् मुद्गरपाणि को अपना इष्टदेव मानकर इसकी प्रतिदिन भक्तिपूर्वक पूजा करता आ रहा हूं । इसकी पूजा करने के बाद ही इन फूलों को बेचकर अपना जीवन-निर्वाह करता हूं । तो यदि मुद्गरपाणि यक्ष देव यहां वास्तव में ही होता तो क्या मुझे इस प्रकार विपत्ति में पड़ा देखता रहता ? अतः वास्तव में यहां मुद्गरपाणि यक्ष नहीं है । यह तो मात्र काष्ठ का पुतला है । तब मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुनमाली के इस प्रकार के मनोगत भावों को जानकर उसके शरीर में प्रवेश किया और उसके बन्धनों को तडातड़ तोड़ डाला । तब उस मुद्गरपाणि यक्ष से आविष्ट अर्जुनमाली ने लोहमय मुद्गर को हाथ में लेकर अपनी बन्धुमती भार्या सहित उन छहों गोष्ठिक पुरुषो को उस मुद्गर के प्रहार से मार डाला । इस प्रकार इन सातों का घात करके मुद्गरपाणि यक्ष से आविष्ट वह अर्जुनमाली राजगृह नगर की बाहरी सीमा के आसपास चारों
ओर छह पुरुषों और एक स्त्री, इस प्रकार सात मनुष्यों की प्रतिदिन हत्या करते हुए घूमने लगा।
__ उस समय राजगृह नगर के श्रृंगाटक, आदि सभी स्थानों में बहुत से लोग परस्पर इस प्रकार बोलने लगे-“देवानुप्रियो ! अर्जुनमाली, मुद्गरपाणि यक्ष के वशीभूत होकर राजगृह नगर के बाहर एक स्त्री और छह पुरुष इस प्रकार सात व्यक्तियों को प्रतिदिन मार रहा है ।" उस समय जब श्रेणिक राजा ने यह बात सुनी तो उन्होंने अपने सेवक पुरुषों को बुलाया और उनको इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रियो ! राजगृह नगर के बाहर अर्जुनमाली यावत छह पुरुषों और एक स्त्री-इस प्रकार सात व्यक्तियों का प्रतिदिन घात करता हुआ घूम रहा है । अतः तुम सारे नगर में मेरी आज्ञा को इस प्रकार प्रसारित करो कि कोई भी घास के लिये, काष्ठ, पानी अथवा फल-फूल आदि के लिये राजगृह नगर के बाहर न निकले । ऐसा न हो कि उनके शरीर का विनाश हो जाय । हे देवानुप्रियो ! इस प्रकार दो तीन बार घोषणा करके मुझे सूचित