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अन्तकृद्दशा-६/३/२७
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पर अंजलिपुट रखा । इसके बाद इस प्रकार बोला
___ मैं उन सभी अरिहंत भगवंतों को, जो अतीतकाल में मोक्ष पधार गये हैं, एवं धर्म के आदिकर्ता तीर्थंकर श्रमण भगवान् महावीर को जो भविष्य में मोक्ष पधारने वाले हैं, नमस्कार करता हूँ।" मैंने पहले श्रमण भगवान् महावीर से स्थूल प्राणातिपात का आजीवन त्याग किया, स्थूल मृषावाद, स्थूल अदत्तादान का त्याग किया स्वदारसंतोष और इच्छापरिमाण रूप व्रत जीवन भर के लिये ग्रहण किया है । अब उन्हीं की साक्षी से प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और संपूर्ण-परिग्रह का सर्वथा आजीवन त्याग करता हूँ । मैं सर्वथा क्रोध, यावत् मिथ्यादर्शन शल्य तक के समस्त पापों का भी आजीवन त्याग करता हूँ | सब प्रकार का अशन, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहार का भी त्याग करता हूँ । यदि मैं इस आसन्नमृत्यु उपसर्ग से बच गया तो पारणा करके आहारादि ग्रहण करूंगा। यदि मुक्त न होऊं तो मुझे यह संपूर्ण त्याग यावज्जीवन हो । ऐसा निश्चय करके सुदर्शन सेठ ने उपर्युक्त प्रकार से सागारी पडिमा धारण की ।
___इधर वह मुद्गरपाणि यक्ष उस हजार पल के लोहमय मुद्गर को घुमाता हुआ जहाँ सुदर्शन श्रमणोपासक था वहाँ आया । परन्तु सुदर्शन श्रमणोपासक को अपने तेज से अभिभूत नहीं कर सका अर्थात् उसे किसी प्रकार से कष्ट नहीं पहुंचा सका । मुद्गरपाणि यक्ष सुदर्शन श्रावक के चारों ओर घूमता रहा और जब उसको अपने तेज से पराजित नहीं कर सका तब सुदर्शन श्रमणोपासक के सामने आकर खड़ा हो गया और अनिमेष दृष्टि से बहुत देर तक उसे देखता रहा । इसके बाद उस मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुन माली के शरीर को त्याग दिया और उस हजार पल भार वाले लोहमय मुद्गर को लेकर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया । मुद्गरपाणि यक्ष से मुक्त होते ही अर्जुन मालाकार 'धस्' इस प्रकार के शब्द के साथ भूमि पर गिर पड़ा । तब सुदर्शन श्रमणोपासक ने अपने को उपसर्ग रहित हुआ जानकर अपनी प्रतिज्ञा का पारण किया और अपना ध्यान खोला ।
इधर वह अर्जुन माली मुहूर्त भर के पश्चात् आश्वस्त एवं स्वस्थ होकर उठा और सुदर्शन श्रमणोपासक को सामने देखकर इस प्रकार बोला-'देवानुप्रिय ! आप कौन हो ? तथा कहाँ जा रहे हो ?' यह सुनकर सुदर्शन श्रमणोपासक ने अर्जुन माली से इस तरह कहा'देवानुप्रिय ! मैं जीवादि नव तत्त्वों का ज्ञाता सुदर्शन नामक श्रमणोपासक हूं और गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर को वंदन-नमस्कार करने जा रहा हूँ ।' यह सुनकर अर्जुन माली सुदर्शन श्रमणोपासक से बोला-'हे देवानुप्रिय ! मैं भी तुम्हारे साथ श्रमण भगवान् महावीर को वंदना यावत् पर्युपासना करना चाहता हूं ।' सुदर्शन ने अर्जुन माली से कहा'देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो ।' इसके बाद सुदर्शन श्रमणोपासक अर्जुन माली के साथ जहाँ गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ आया और अर्जुन माली के साथ श्रमण भगवान् महावीर को आदक्षिण प्रदक्षिणा की, यावत् उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने सुदर्शन श्रमणोपासक, अर्जुनमाली और उस विशाल सभा के सम्मुख धर्मकथा कही । सुदर्शन धर्मकथा सुनकर अपने घर लौट गया ।
__ अर्जुनमाली श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्मोपदेश सुनकर एवं धारण कर अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुआ और प्रभु महावीर को तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा कर, वंदन-नमस्कार