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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नमो नमो निम्मलदसणस्स |९| अनुत्तरोपपातिकदशा
अंगसूत्र-९ हिन्दी अनुवाद
(वर्ग-१) [१] उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । आर्य सुधर्मा विराजमान हुए। नगर की परिषद् गई और धर्म सुनकर वापिस चली गई । जम्बू स्वामी कहने लगे "हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् महावीर ने आठवें अङ्ग, अन्तकृद्-दशा का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन् ! नौवें अङ्ग, अनुत्तरोपपातिक-दशा का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है । वह सुधा अनगार ने जम्बू अनगार से कहा “हे जम्बू ! इस प्रकार मोक्ष को प्राप्त हुए श्री श्रमण भगवान् महावीर ने नौवें अङ्ग, अनुत्तरोपपातिक-दशा, के तीन वर्ग प्रतिपादन किये हैं" । "हे भगवन् ! श्री श्रमण भगवान् ने यदि नौवें अङ्ग, अनुत्तरोपपातिकदशा, के तीन वर्ग प्रतिपादन किये हैं तो प्रथम वर्ग, अनुत्तरोपपातिक-दशा, के कितने अध्ययन प्रतिपादन किये हैं ?" “हे जम्बू ! प्रथम वर्ग, अनुत्तरोपपातिक-दशा, के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं, जैसे-जालि, मयालि, उवयालि, पुरुपसेन, वारिसेन, दीर्घदंत, लष्टदंत, वहेल्ल, वेहायस और अभय कुमार ।
हे भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम वर्ग के दश अध्ययन प्रतिपादन किये हैं तो हे भगवन् ! अनुत्तरोपपातिक-दशा के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में वृद्धि, धन, धान्य से युक्त राजगृह नगर था । उसके बाहर गुणशील चैत्य था । श्रेणिक राजा था । धारिणी राणी थी । धारिणी देवी ने स्वप्न में सिंह देखा । मेघकुमार के समान जालिकुमार का जन्म हुआ। (जालिकुमार का आठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ ।) आठों के घर से बहुत प्रीतिदान आया । सारे सुखों का अनुभव करता हुआ वह विचरण करने लगा । गुणशीलक चैत्य में श्रमण भगवान् महावीर बिराजमान हुए । वहां श्रेणिक राजा उनकी वन्दना के लिए गया । मेघकुमार के समान जालिकुमार भी गया । मेघकुमार के समान जालिकुमार दीक्षित हो गया । उसने एकादशाङ्ग शास्त्रों का अध्ययन किया । गुणरत्न नामक तप भी किया । शेष स्कन्दक के समान जानना। उसी प्रकार धर्म-चिन्तना, श्री भगवान से अनशन का विषय पूछना आदि । फिर वह उसी तरह स्थविरों के साथ विपुलगिरि पर्वत पर गया । विशेषता इतनी कि वह सोलह वर्ष के श्रामण्य-पर्याय का पालन कर मृत्यु के समय के आने पर काल करके चन्द्र से ऊंचे सौधर्मेशान, आरण्याच्युत-कल्प देवलोक और ग्रैवेयक-विमान-प्रस्तटों से भी ऊंचे व्यतिक्रम करके विजय विमान में देवरूप से उत्पन्न हुआ ।
तब वे स्थविर भगवान जालि अनगार को काल-गत हआ जानकर परिनिर्वाण-प्रत्ययिक कायोत्सर्ग करके तथा जालि अनगार के वस्त्र और पात्र लेकर उसी प्रकार पर्वत से उतर आए और श्री श्रमण भगवन् महावीर के पास आकर निवेदन किया कि हे भगवन् ! ये जालि