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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
के तेरह अध्ययन कहे गये हैं ।
[४२] नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा, नन्दश्रेणिका, मरुता, सुमरुता, महामरुता, मरुद्देवा ।
[४३] भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमनायिका, भूतदत्ता । ये सब श्रेणिक राजा की रानियाँ थीं।"
[४४] "भगवन् ! प्रभु ने सातवें वर्ग के तेरह अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का हे पूज्य ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ कहा है ?" “हे जंबू ! उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था । उसके बाहर गुणशील चैत्य था । श्रेणिक राजा था । नन्दा रानी थी, प्रभु महावीर पधारे । परिषद् वन्दन करने को निकली । नन्दा देवी भगवान् के आने का समाचार सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और आज्ञाकारी सेवक को बुलाकर धार्मिक-रथ लाने की आज्ञा दी । पद्मावती की तरह इसने भी दीक्षा ली यावत् ग्यारह अंगों का अध्ययन किया । बीस वर्ष तक चारित्र का पालन किया, अंत में सिद्ध हुई । [४५] नन्दवती आदि शेष बारह अध्ययन नन्दा के समान हैं ।
(वर्ग-2) [४६] “भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने अंतगडदशा के आठवें वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?" “हे जंबू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु महावीर ने आठवें अंग अंतगडदशा के आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं ।
[४७] काली, सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितुसेनकृष्णा और महासेनकृष्णा । .
वर्ग-८ अध्ययन-१ । [४८] "भगवन् ! यदि आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत मुक्तिप्राप्त महावीर ने क्या अर्थ कहा है ?" "हे जंबू ! उस काल और उस समय चम्पा नाम की नगरी थी । वहाँ पूर्णभद्र चैत्य था । वहाँ कोणिक राजा था । श्रेणिक राजा की रानी और महाराजा कोणिक की छोटी माता काली देवी थी । (वर्णन) । नन्दा देवी के समान काली रानी ने भी प्रभु महावीर के समीप श्रमणीदीक्षा ग्रहण करके सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया एवं बहुत से उपवास, बेले, तेले आदि तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी ।
एक दिन वह काली आर्या, आर्या चन्दना के समीप आयी और हाथ जोड़ कर विनयपूर्वक बोली-“हे आर्ये ! आपकी आज्ञा प्राप्त हो तो मैं रत्नावली तप को अंगीकार करके विचरना चाहती हूँ।" “देवानुप्रिये ! जैसे सुख हो वैसा करो, प्रमाद मत करो ।” तब काली आर्या, आर्या चन्दना की आज्ञा पाकर रत्नावली तप को अंगीकार करके विचरने लगी, उपवास किया, करके, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, पारणा करके, बेला किया, करके, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर तेला किया, करके, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर आठ बेले किये, करके, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर उपवास किया, करके, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर बेला किया, करके, सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर तेला किया. करके,