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In सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अष्टम अध्ययन (७६
अष्टम अध्ययन : कापिलीय
पूर्वालोक-कथा सूत्र___ कपिल के पिता काश्यप ब्राह्मण चौदह विद्याओं के ज्ञाता और कौशाम्बीनरेश जितशत्रु की राजसभा के एक रल थे। राजा उन्हें बहुत सम्मान देता था। बहुत ही ठाठ-बाट से वे राज-सभा को जाते थे। ____ अचानक ही काश्यप ब्राह्मण की मृत्यु हो जाने से उसकी पत्नी यशा और अल्पवयस्क पुत्र कपिल अनाथ हो गये। राजा जितशत्रु ने उनके स्थान पर दूसरे विद्वान को नियुक्त कर दिया। अब वह ब्राह्मण ठाठ-बाट से राजसभा में जाने लगा। उस नये राजपण्डित को देखकर यशा की आँखों में आँसू छलक आते। ___ एक बार कपिल ने माँ से आँसुओं का कारण पूछा तो माँ ने सब कुछ वताकर कहा-पुत्र ! जिस समय तुम्हारे पिता का स्वर्गवास हुआ, उस समय तुम अल्पवयस्क थे। यदि विद्या पढ़कर विद्वान बन जाओ तो पिता का पद तुम्हें मिल सकता है। ___ कपिल ने विद्या पढ़ने की इच्छा प्रगट की तो माँ ने कहा-पुत्र ! यहाँ तो कोई पण्डित तुम्हें पढ़ाएगा नहीं। तुम्हारे पिता की विद्वत्ता से सभी ईर्ष्या करते हैं। तुम श्रावस्ती चले जाओ। वहाँ तुम्हारे पिता के मित्र इन्द्रदत्त उपाध्याय हैं। वे तुम्हें विद्याओं में निष्णात बना देंगे। ___ माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर कपिल श्रावस्ती जा पहुँचा। इन्द्रदत्त उपाध्याय से मिला, अपना परिचय दिया। इन्द्रदत्त ने कपिल को पढ़ाने का आश्वासन दिया और उसके भोजन तथा निवास की व्यवस्था नगर के धनी श्रेष्ठी शालिभद्र के यहाँ कर दी। श्रेष्ठी ने कपिल की सेवा के लिए एक दासी नियुक्त कर दी। ___ अब कपिल दिनभर इन्द्रदत्त उपाध्याय के यहाँ रहकर अध्ययन करता और सन्ध्या समय श्रेष्ठी शालिभद्र के यहाँ आ जाता, वहीं विश्राम करता। ___दासी और कपिल-दोनों युवा थे, सुन्दर थे, हँसमुख थे। परस्पर आकर्षित हो गये। दासी कपिल के प्रति समर्पित हो गई। किन्तु दोनों ही धनहीन थे। दासी तो दासी ही थी, कपिल भी अध्ययन हेतु आया था, दूसरों की दया पर निर्भर था, अतः धन होने का प्रश्न ही नहीं था। ___एक बार श्रावस्ती में कोई विशाल जन-महोत्सव होने वाला था। दासी की इच्छा भी उसमें सम्मिलित होने की थी; लेकिन महोत्सव के योग्य उसके पास वस्त्र भी न थे। दासी ने अपनी इच्छा कपिल के समक्ष प्रगट की तो अपनी धनहीनता के कारण वह उदास हो गया।
दासी ने धन प्राप्ति का उपाय बताया-नगर में एक धन कुबेर श्रेष्ठी है। प्रातः जो ब्राह्मण उसे सर्वप्रथम आशीर्वाद देता है उसे वह दो माशा सोना देता है। तुम वहीं पर जाओ।
दूसरा कोई ब्राह्मण आशीर्वाद देने सेठ के पास पहले न पहुँच जाय, इस चिन्ता में कपिल को नींद न आई, वह आधी रात को ही उठकर चल दिया। राज सेवकों से उसे चोर समझकर पकड़ लिया और प्रातः श्रावस्तीनरेश प्रसेनजित के सामने पेश कर दिया।
राजा के पूछने पर कपिल ने सब कुछ स्पष्ट बता दिया। उसकी सरलता और सत्यवादिता से प्रभावित होकर राजा ने मन इच्छित धन मांगने का वचन दिया। कुछ समय की मौहलत माँगकर कपिल राजोद्यान में एक स्थान पर बैठकर सोचने लगा-कितना धन माँगूं-सौ मुद्राएँ, नहीं ! इनसे क्या होगा? तो दो सौ स्वर्ण
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