Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 629
________________ ५२३) षट्त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों की कायस्थिति उत्कृष्ट रूप से कोटि पूर्व पृथक्त्व सहित तीन पल्योपम की होती है और जघन्य रूप से अन्तर्मुहूर्त की बताई गई है ॥१८५॥ Longest body duration of five sensed terrestrial animals is of koți purva prthakatva plus three palyopamas and shortest is of antarmuhurta. (185) कायट्ठिई थलयराणं, अन्तरं तेसिमं भवे । कालमणन्तमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१८६॥ उनका अन्तर उत्कृष्ट अनन्तकाल का और जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है ॥१८६॥ Their longest interval is of infinite time and shortest is of antarmuhūrta. (186) एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥१८७॥ इन स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा हजारों प्रकार हो जाते हैं ॥१७॥ There becomes thousands of kinds of five sensed terrestrial animals regarding colour, smell, taste, touch and form. (187) नभचर पंचेन्द्रिय स जीव चम्मे उ लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया । विययपक्खी य बोद्धव्वा, पक्खिणे य चउव्विहा ॥१९८॥ नभचर-पक्षी तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार के जानने चाहिए-(१) चर्म पक्षी (चमगादड़ आदि) (२) लोमपक्षी (रोमपक्षी) (हंस आदि) (३) समुद्ग पक्षी और (४) वितत पक्षी ॥१८॥ _Five sensed birds or winged animals are of four kinds-(1) of membranous wings, likebats etc., (2) of feathered wings, like-geese etc., (3) of box-shapped wings, which are always closed, like-samudga bird and (4) of outspread wings, they sit upon their spread wings, like vitata birds. (188) लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वुच्छ तेसिं चउव्विहं ॥१८९॥ ये नभचर (पक्षी) लोक के एक देश (अंश या भाग) में ही रहते हैं, समस्त लोक में नहीं रहते। इससे आगे मैं उन नभचर (आकाशचारी-खेचर) पक्षियों के कालविभाग का चार प्रकार से वर्णन करूँगा ॥१८९॥ These all winged animals, birds are only in a part of universe, not in whole universe. Now further I shall describe the fourfold divisions regarding time of all these kinds of birds. (189) संतइं पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥१९०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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