Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 630
________________ an सचित्र उत्तराध्ययन सत्र षट्त्रिंश अध्ययन [५२४ संतति-प्रवाह की अपेक्षा से नभचर पक्षी अनादि-अनन्त होते हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त (आदि और अन्त सहित) भी होते हैं ॥१९०॥ With continuous flow all these birds flying in the sky are without beginning and end. But considering individual age duration these are with beginning and end too. (190) पलिओवमस्स भागो, असंखेज्जइमो भवे । आउट्टिई खहयराणं, अन्तोमुहत्तं जहनिया ॥१९१॥ खेचर (नभचर) पक्षियों की उत्कृष्ट आयुस्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग की और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है ।।१९१॥ Longest age duration of birds flying in the sky is of innumerable part of palyopama and shortest is of antarmuhurta. (191) असंखभागो पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिओ। पुव्वकोडीपुहत्तेणं, अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥१९२॥ खेचर जीवों की कायस्थिति उत्कृष्टतः कोटिपूर्व पृथक्त्व अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण और जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है ॥१९२॥ Longest body duration of birds flying in the sky is of koți purva prthaktva and shortest is of antarmuhurta. (192) कायठिई खहयराणं, अन्तरं तेसिमं भवे । कालं अणन्तमुक्कोस, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥१९३॥ उन खेचर जीवों का अन्तर उत्कृष्टतः अनन्त काल का और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त का हाता है ||१९३॥ Longest interval of these birds is of infinite time and shortest is of antarmuhurta. (193) एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥१९४॥ इन खेचर जीवों के वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा हजारों प्रकार होते हैं ॥१९४॥ There becomes thousands of kinds of flying beings with regard to colour, smell, taste, ouch and form. (194) मनुष्यों सम्बन्धी प्ररूपणा मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण । संमुच्छिमा य मणुया, गब्भवक्कन्तिया तहा ॥१९५॥ मनुष्यों के दो भेद हैं-(१) संमूर्छिम मनुष्य और (२) गर्भ-व्युत्क्रान्तिक-गर्भज मनुष्य। उन भेदों के विषय में मैं कहता हूँ, सुनो ॥१९॥ Men (human beings) are of two kinds-(1) originated by generatio aequivoca (sarmūrcchima) and (2) born from the womb (garbhaja). I describe their divisions, listen to me. (195) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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