Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 632
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र (गर्भज) मनुष्य की उत्कृष्ट कायस्थिति पूर्वकोटि- पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम की है और जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त की बताई गई है || २०१ || The longest body duration of men, born from the womb, is of purva koti pṛthaktva plus three palyopama and shortest body duration is of antarmuhurta. (201) षट्त्रिंश अध्ययन [ ५२६ भवे । कायडिई मणुयाणं, अन्तरं तेसिमं अणन्तकालमुक्कोi, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं ॥ २०२ ॥ उन (गर्भज मनुष्यों) का अन्तर (काल) उत्कृष्टतः अनन्त काल है और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त काल का होता है ॥ २०२॥ The longest interval time of men born from the womb is of infinite time and shortest is of antarmuhūrta. (202) एऐसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाइं सहस्ससो ॥ २०३ ॥ उन (गर्भज मनुष्यों) के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से हजारों प्रकार हो जाते हैं ||२०३॥ Thousands of kinds of womb-born men become with regard to colour, smell, taste, touch and form. (203) देवों के सम्बन्ध में प्ररूपणा देवा चउव्विहा वुत्ता, ते मे कित्तयओ सुण । भोमिज्ज - वाणमन्तर, जोइस-वेमाणिया तहा ॥ २०४॥ देव चार प्रकार के बताये गये हैं - ( १ ) भोमिज्ज-भवनवासी, (२) वाणमंतर - वाणव्यंतर (व्यंतर) (३) जोइस - ज्योतिष्क (ज्योतिषी) और (४) वेमाणिया वैमानिक । मैं इन चारों की प्ररूपणा करता हूँ, तुम मुझसे सुनो ॥ २०४ ॥ There are four kinds of gods - ( 1 ) Bhavanavāsī (2) Vanvyantara ( 3 ) Jyotisi and (4) Vaimānikas. I describe them, hear from me. (204) दसहा उ भवणवासी, अट्ठहा वणचारिणो । पंचविहा जोइसिया, दुविहा वेमाणिया तहा ॥२०५॥ दस प्रकार के भवनवासी देव, आठ प्रकार के व्यंतर देव (वणचारिणो), पाँच प्रकार के ज्योतिषी देव और दो प्रकार के वैमानिक देव हैं || २०५ ॥ There are ten kinds of Bhavanavāsi, eight kinds of Vyantara, five kinds of Jyotiși and two kinds of Vaimānika gods. (205) Jain Education International असुरा नाग-सुवण्णा, विज्जू अग्गी य आहिया । दीवोदहि- दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो ॥ २०६ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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