Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 475
________________ ३७३] एकोनत्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र सूत्र ३७-(प्रश्न) भगवन् ! कषाय के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) कषाय के प्रत्याख्यान से जीव को वीतरागभाव की प्राप्ति होती है। वीतराग भाव से संपन्न जीव सुख-दुःख में सम-समभाव वाला हो जाता है। Maxim 37. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by renunciation of passions ? (A). By renunciation of pasions, the soul attains the state of non-attachment. Thereby he remains even-minded or equanimous to pleasures and pains. सूत्र ३८-जोगपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? जोगपच्चक्खाणेणं अजोगत्तं जणयइ । अजोगी णं जीवे नवं कम्मं न बन्धइ, पुव्ववद्धं च निज्जरेइ । सूत्र ३८-(प्रश्न) भगवन् ! योग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) योग (मन-वचन-काय योगों के व्यापारों) के प्रत्याख्यान से अयोगत्व की प्राप्ति होती है। अयोगी जीव नए कर्मों का बन्धन नहीं करता, पूर्व में बंधे हुए कर्मों की निर्जरा करता है। ___Maxim 38. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by renunciation of activities? (A). By renunciation of the activities (the activities of mind, speech and body) the soul becomes devoid of activities. By ceasing to act he acquires no new karmas and annihilates the formerly accumulated karmas. सूत्र ३९-सरीरपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सरीरपच्चक्खाणेणं सिद्धाइसयगुणत्तणं निव्वत्तेइ । सिद्धाइसयगुणसंपन्ने य णं जीवे लोगग्गमुवगए परमसुही भवइ ॥ सूत्र ३९-(प्रश्न) भगवन् ! शरीर-प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) शरीर के प्रत्याख्यान से जीव सिद्धों के अतिशय गुणत्व (गुणों) को प्राप्त कर लेता है। सिद्धों के अतिशय गुणों से संपन्न जीव लोक के अग्रभाव में पहुँचकर परम सुखी हो जाता है। Maxim 39. (Q). Bhagawan ! What does the soul acquire by quitting the body ? (A). By quitting the body, the soul acquires the virtues of emancipateds, by possession of those virtues, reaching the highest region of loka, he becomes happiest. सूत्र ४0-सहायपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? सहायपच्चक्खाणेणं एगीभावं जणयइ । एगीभावभूए वि य णं जीवे एगग्गं भावमाणे अप्पसदे, अप्पझंझे, अप्पकलहे, अप्पकसाए, अप्पतुमंतुमे, संजमबहुले, संवरबहुले, समाहिए यावि भवइ ॥ ___ सूत्र ४0-(प्रश्न) भगवन् ! सहाय (सहायक तथा सहायता के) प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता (उत्तर) सहाय-प्रत्याख्यान से जीव एकीभाव को प्राप्त करता है। एकीभाव को प्राप्त साधक एकत्व की भावना करता हुआ अल्पशब्द वाला, वाक्कलह से रहित, झगड़े टंटे से दूर, अल्प कषाय वाला, अल्प तू-तू, मैं-मैं वाला होकर संवर-बहुल, संयम-बहुल, तथा समाधियुक्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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