Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 497
________________ ३९५] त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र Abstinence with regard to time is observed by the mendicant who wanders for seeking food in that time of the four paurusis (praharas) of day, it should be known. (20) अहवा तइयाए पोरिसीए, ऊणाइ घासमेसन्तो । चभागूणा वा, एवं कालेण ऊ भवे ॥२१॥ अथवा तीसरी पौरुषी (प्रहर) में कुछ कम या चतुर्थ भाग कम में भिक्षा की गवेषणा करना, काल संबंधी ऊनोदरी तप होता है ॥२१॥ Again, seeking food in a part of third pauruși of the day or in the last quarter of it, he observes abstinence penance with regard to time. (21) इत्थी वा पुरिसोवा, अलंकिओ वाऽणलंकिओ वा वि । अन्नयरवयत्थो वा, अन्नयरेणं व वत्थेणं ॥२२॥ स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत ( अलंकारयुक्त) या अनलंकृत ( अलंकार रहित ) हो अथवा अमुक आयु अथवा अमुक वस्त्र वाले (धारण किये हुए) हों - ॥ २२ ॥ Woman or man, adorned or unadorned, of any age or any dress - ( 22 ) अन्नेण विसेसेणं, वण्णेणं भावमणुमुयन्ते उ । एवं चरमाणो खलु, भावोमाणं मुणेयव्वो ॥२३॥ अथवा अमुक विशिष्ट वर्ण या भाव (हर्षादि हार्दिक भावों) से युक्त दाता से भिक्षा लूँगा (इस प्रकार के ग्रह से युक्त) भिक्षा के लिए विचरण करते हुए साधु को भाव से ऊनोदरी तप मानना चाहिए ॥२३॥ Of any colour or temper-feeling of joy etc.,-with the firm determination like this, wandering mendicant for seeking alms, he should be known as observing abstinence penance by state of mind. (23) Jain Education International दव्वे खेत्ते काले, भावम्मि य आहिया उ जे भावा । एएहि ओमचरओ, पज्जवचरओ भवे भिक्खू ॥२४॥ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव में जो भाव (पर्याय) कहे गये हैं, उन सब भावों (पर्यायों) से भिक्षाचर्या करने वाले भिक्षु के पर्याय ऊनोदरी तप (पज्जवचर) होता है ॥२४॥ In substance, place, time, state of mind the developments which are said, by all these developments seeking alms-such mendicant is known as abstemious regarding development. (24) अट्ठविहगोयरग्गं तु, तहा सत्तेव एसणा । अभिग्गहा य जे अन्ने, भिक्खायरियमाहिया ॥२५॥ आठ प्रकार के गोचराग्र, सात प्रकार की एषणाएँ तथा अन्य अनेक प्रकार के अभिग्रह भिक्षाचर्या तप कहे गये हैं ॥२५॥ Regarding seeking alms there are eight principal ways (gocaragra) how to collect or seek them; and seven types of modes of seeking (eṣaṇās) and other self resolves are seeking food penance. (25) For Private & Personal Use Only www.jethelprary.org

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