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४११] एकत्रिंश अध्ययन
सात भय
१. इहलोक भय - अपनी ही जाति के प्राणी से डरना, इहलोक भय है। जैसे मनुष्य का मनुष्य से, तियंच का तिर्यंच आदि
से डरना।
२. परलोक भय-दूसरी जाति वाले प्राणी से डरना, परलोक भय है। जैसे मनुष्य का देव से या निर्बंध आदि से डरना ।
३. आदान भय अपनी वस्तु की रक्षा के लिये चोर आदि से डरना ।
४. अकस्मात् भय - किसी बाह्य निमित्त के बिना अपने आप ही सशंक होकर रात्रि आदि में अचानक डरने लगना । ५. आजीव भय-दुर्भिक्ष आदि में जीवन यात्रा के लिये भोजन आदि की अप्राप्ति के दुर्विकल्प से डरना।
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
६. मरण भय - मृत्यु से डरना ।
७. अश्लोक भय-अपयश की आशंका से डरना ( स्थानांग ७)
आठ मदस्थान
१. जाति मद - ऊँची और श्रेष्ठ जाति का अभिमान । २. कुलमद ऊँचे कुल का अभिमान । कुलमद-ऊँचे
३. बलमद - अपने बल का घमण्ड ।
४. रूप मद-अपने रूप सौन्दर्य का गर्व
५. तप मद उप्र तपस्वी होने का अभिमान ।
६. श्रुत मद-शास्त्राभ्यास अर्थात् पाण्डित्य का अभिमान ।
७. लाभ मद अभीष्ट वस्तु के मिल जाने पर अपने लाभ का अहंकार ।
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८. ऐश्वर्य मद अपने ऐश्वर्य अर्थात् प्रभुत्व का अहंकार (स्थानांग ८)
नौ ब्रह्मचर्य गुप्ति - इनके लिये इसी सूत्र का १६वाँ अध्ययन देखें। दस श्रमण धर्म
१. क्षान्ति क्रोध न करना।
२. मार्दव - मृदु भाव रखना। जाति, कुल आदि का अहंकार न करना ।
३. आर्जव ऋजुभाव सरलता रखना, माया न करना।
४. मुक्ति - निर्लोभता रखना, लोभ न करना ।
५. तप- अनशन आदि बारह प्रकार का तप करना ।
६. संयम - हिंसा आदि आस्रवों का निरोध करना ।
७. सत्य - सत्य भाषण करना, झूठ न बोलना ।
८. शौच - संयम में दूषण न लगाना, संयम के प्रति निरुपलेपता - पवित्रता रखना ।
९. आकिंचन्य- परिग्रह न रखना।
१०. ब्रह्मचर्य - ब्रह्मचर्य का पालन करना ।
ग्यारह उपासक प्रतिमायें - देखें समवायांग ११
बारह भिक्षु प्रतिमायें देखें समवायांग १२
तेरह क्रियास्थान - (देखें समवायांग १३ )
चौदह भूतग्राम-जीवसमूह
१. सूक्ष्म एकेन्द्रिय, २. बादर एकेन्द्रिय, ३. द्वीन्द्रिय, ४. त्रीन्द्रिय, ५. चतुरिंद्रिय ६. असंज्ञी पंचेन्द्रिय और ७. संज्ञी पंचेन्द्रिय। इन सातों के पर्याप्त और अपर्याप्त-कुल चौदह भेद होते हैं। इनकी विराधना करना, किसी भी प्रकार की पीड़ा देना वर्जित है। (समवायांग)
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