Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 551
________________ ४४७) त्रयस्त्रिश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र तेतीसवाँ अध्ययन : कर्म प्रकृति पूर्वालोक प्रस्तुत अध्ययन का नाम कर्म प्रकृति है। नाम से ही स्पष्ट है कि इस अध्ययन में कर्म प्रकृतियों का वर्णन किया गया है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है का बन्धन क्यों होता है आदि .. कर्म क्या हैं, वे आत्मा से कैसे चिपकते हैं और आत्मा तथा कर्म कर्म पुद्गल द्रव्य (Matter) हैं । पुद्गल की कई वर्गणाएँ हैं। उनमें से एक कर्म (कार्मण) वर्गणा भी है। चतुःस्पर्शी असंख्य पुद्गल परमाणुओं का समूह कार्मण वर्गणा है। जीव के राग-द्वेष-मोह युक्त भावों से आकृष्ट होकर ये कर्म-वर्गणाएं जीव के साथ नीर-क्षीर के समान एक क्षेत्रावगाह - एकमेक हो जाती है। यही बन्ध है। बन्ध का प्रारम्भ कब हुआ ? जीव पहली बार कर्मों से कब बँधा ? इसका उत्तर है अनादिकाल से; क्योंकि संसारी जीव की कभी अबन्ध दशा थी ही नहीं। वह सदा ही विभाव में रहा। लेकिन स्वभाव की साधना करके वह अबन्ध हो सकता है और तब वह सिद्ध अथवा परमात्मा बन जाता है। कर्म आठ हैं - ( १ ) ज्ञानावरण-ज्ञान अथवा विशिष्ट बोध का आवरक । (२) दर्शनावरण-सामान्य सत्ता के अवलोकन-दर्शन, देखने की शक्ति का आवरक । (३) वेदनीय - सुख-दुःख की अनुभूति ( वेदना ) कराने वाला । (४) मोहनीय - जीव के आत्मा के प्रति सम्यक् (सत्य) दृष्टि और तदनुरूप सम्यक् आचरण में विकार उत्पन्न कराने वाला। (५) आयु - किसी एक गति-योनि में जीवित रहने की समय-सीमा निर्धारण में हेतुभूत । (६) नाम - शरीर रचना में हेतुभूत | (७) गोत्र - उच्च-नीच कुल में जीव को उत्पन्न होने में हेतुभूत । (८) अन्तराय - जीव की उपलब्धियों में विघ्नकारक । Jain Education International इन आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ १४८ हैं - ज्ञानावरण की ५, दर्शनावरण की ९, वेदनीय की २, मोहनीय की २८, आयु की ४, नाम की ९३, गोत्र की २ और अन्तराय की ५ । बन्ध की चार दशाएँ हैं - ( १ ) प्रकृति, (२) प्रदेश, (३) स्थिति और (४) अनुभाग - फल प्रदान शक्ति । कर्म का बन्ध जीव के राग-द्वेष आदि अध्यवसायों से होता है। तीव्र, तीव्रतर, तीव्रतम, मन्द, मन्दतर, मन्दतम आदि अध्यवसायों की अनेक तरतमताएँ हैं, इसी कारण कर्मों की भी अनेक तरतमताएँ हो जाती हैं । प्रस्तुत अध्ययन में इन सभी बातों का संक्षिप्त किन्तु सम्पूर्ण विवेचन किया गया है। इस अध्ययन में २५ गाथाएँ हैं। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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