Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 621
________________ ५१५] षट्त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १४४॥ इन त्रीन्द्रिय जीवों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से हजारों प्रकार कहे गये हैं || १४४ ॥ There becomes thousands of types of these three-sensed beings due to colour, smell, taste, touch and form. (144) चतुरिन्द्रिय त्रस काय प्ररूपणा चउरिन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १४५ ॥ जो चतुरिन्द्रिय (चार इन्द्रियों वाले) जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं - ( १ ) पर्याप्त और (२) अपर्याप्त। उनके भेद मुझसे सुनो ॥ १४५ ॥ Four-sensed mobile beings are of two kinds - ( 1 ) fully developed and (2) undeveloped. Listen their divisions from me. (145) अन्धिया पोत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीड-पयंगे य, ढिंकुणे कुंकुणे तहा ॥ १४६॥ अन्धिया- अन्धिका, पोत्तिया-पोत्तिका, मच्छिया-मक्षिका (मक्खी), मसगा - मशक (मच्छर - डांस) भमरेभ्रमर (भौंरा ), कीड-पयंगे-कीट (टिड्डे, पतंगे) ढिंकुणे- ढिंकुण (पिस्सु), कंकुणे- कंकुण - ॥ १४६ ॥ Andhikā, pottikā, flies, mosquitoes, large black bees, moths, gnat ( pissu), kankuna-(146) कुक्कुडे सिंगिरीडी य, नन्दावत्ते य विंछिए । डोले भिंगारी य, विरली अच्छिवेह ॥ १४७॥ कुक्कुडे - कुक्कुड, सिंगिरीडी - शृंगिरीटी, नन्दावत्ते - नन्दावर्त, विंछिए - बिच्छु (वृश्चिक), ढोले - ढोल, भिंगरीडी - भृंगरीटक ( झींगुर अथवा भ्रमरी), विरली - विरली, अच्छिवेहए-अक्षिवेधक-॥ १४७ ॥ Jain Education International Kukkuda, srigarīti, nandävarta, scorpions, dhola, bhrngritaka or grasshopper, virali aksivedhaka-(147) अच्छिले माह अच्छिरोडए, विचित्ते चित्तपत्तए । ओहिंजलिया जलकारी य, नीया तन्तवगाविया ॥ १४८ ॥ अच्छिले - अक्षिल, माहए-मागध, अच्छिरोडए - अक्षिरोडक, विचित्ते - विचित्र, चित्तपत्त - चित्रपत्रक, ओहिंजलिया - ओहिंजलिया, जलकारी-जलकारी, नीया - नीचक, तन्तवगाविण - तन्तवक ( अथवा तम्बगाइणताम्रक या तम्बकायिक) - ॥ १४८ ॥ Akşila, māgadha, aksirodaka, vicitra, citrapatraka ohimjalia, jalakārī, nicaka, tantavaka etc. - (148) इइ चउरिन्दिया एए, ऽणेगहा एवमायओ । लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे परिकित्तिया ॥१४९॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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