Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 619
________________ ५१३ ] षट्त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र अणन्तकालमुक्को, अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइन्दियजीवाणं, अन्तरेयं वियाहियं ॥ १३४॥ द्वीन्द्रिय जीवों का अन्तर ( द्वीन्द्रिय से निकलकर पुनः द्वीन्द्रिय में उत्पन्न होने के मध्य का समय ) उत्कृष्टतः अनन्तकाल का और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त का है ॥ १३४ ॥ Interval period of two-sensed beings (in between time from going out of two-sensed life and again taking birth as two-sensed being) is maximumly of infinite time and minimumly of antarmuhūrta. (134) एएसिं वण्णओ चेव, गन्धओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणारं सहस्ससो ॥१३५॥ इन द्वीन्द्रिय जीवों के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से हजारों प्रकार हो जाते हैं ॥१३५॥ There are thousands of kinds regarding colour, smell, taste, touch and form, of twosensed beings. (135) त्रीन्द्रिय त्रसकाय की प्ररूपणा तेइन्दिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तया । पज्जत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेए सुणेह मे ॥ १३६॥ जो त्रीन्द्रिय जीव हैं वे दो प्रकार के कहे गये हैं- ( १ ) पर्याप्त और (२) अपर्याप्त। इन जीवों के भेद मुझसे सुनो ॥१६६॥ Three sensed beings are of two kinds - ( 1 ) fully developed and (2) undeveloped. Hear the divisions of these beings from me. (136) कुन्थु-पिवीलि-उड्डंसा, उक्कलुद्देहिया तहा । तणहार-कट्ठहारा, मालुगा पत्तहारगा ॥ १३७॥ कुन्थु - कुन्थुआ, पिवील - पिपीलिका ( चींटी), उड्डंसा - उद्दस (खटमल), उक्कल, मकड़ी, उद्देहिया - उदई ( दीमक ), तणहारा - तृणहारक, कट्ठहारा - काष्टहारक (घुन), मालूगा - मालुका, पत्तहारगा - पत्रहारक - ॥१३७॥ Kunthuã or animalcules, ants, bugs, ukkala, spiders, white ants, trnahāraka or strawworm, woodworm, mālukā, patrahāraka or leaf worm- (137) कप्पास मंज य, तिंदुगा तउसमिंजगा । सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इन्दकाइया ॥ १३८॥ कपासऽट्ठिमिंजा - कपास और उसकी अस्थि कपासिये - करकड़ों) में उत्पन्न होने वाले जीव, तिन्दुगातिन्दुक, तउसमिंजगा -- तृपुषमिंजक, सदावरी - सतावरी, गुम्मी - गुल्मी - (कानखजूरा), इन्द्रकायिक - षट्पदी (जूँ) ये सब - त्रीन्द्रिय सकायिक जीव जानने चाहिए ॥ १३८ ॥ Duga shining like lead, which originate in the kernel of cotton seed, trpusamiñjaka, satavari, gulmi, louse-these all are three-sensed movable beings. (138) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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