Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

View full book text
Previous | Next

Page 578
________________ ती सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र चतुस्त्रिंश अध्ययन [४७२ तेजोलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, वही व उससे एक समय अधिक की पद्म लेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त अधिक दस सागरोपम की है ॥५४॥ Which is the longest duration of red tinge, the same and adding one samaya to it makes the shortest duration of yellow tinge and its longest duration is of ten sāgaropames plus one muhurta. (54) जा पम्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जहन्नेणं सुक्काए, तेत्तीस-मुहुत्तमब्भहिया ॥५५॥ पद्म लेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति कही गई है, वही तथा उससे एक समय अधिक शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति होती है, और उत्कृष्ट एक मुहूर्त अधिक तेतीस सागरोपम की है ॥५५॥ Which is the longest duration of yellow tinge, the same and adding one samaya to it makes the shortest duration of white tinge and the longest duration of it, is thirtythree sagaropamas plus one muhurta. (55) (१०) गतिद्वार किण्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ । ___ एयाहि तिहि वि जीवो, दुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥५६॥ कृष्ण, नील, कापोत-ये तीनों ही अधर्म लेश्याएँ हैं। इन तीनों के कारण जीव बहुत बार दुर्गति में भी उत्पन्न होता है ॥५६॥ Black, blue, grey-all these three are irreligious tinges. On account of these many times soul takes birth in ill-existences. (56) तेऊ पम्हा सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई बहुसो ॥५७।। तेजस्, पद्म, शुक्ल-ये तीनों ही धर्म लेश्या हैं। इन तीनों के कारण जीव बहुत बार सुगति में भी उत्पन्न होता है ॥५७॥ Red, yellow and white-all these three are religious tinges. On account of these, the soul many times takes birth in good existences. (57) (११) आयुद्धार लेसाहिं सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न वि कस्सवि उववाओ, परे भवे अस्थि जीवस्स ॥५८॥ प्रथम समय में परिणत हुई सभी लेश्याओं से किसी भी जीव की परभव (दूसरे जन्म) में उत्पत्ति नहीं होती ॥५८॥ In the first moment of all tinges, (when, these or any one of them enjoined to the soul) the soul cannot be born in next existence. (58) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652