Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 611
________________ ५०५] षटत्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in Fully developed flora bodied beings are said of two kinds-(1) Common bodied (Compound of infinite souls sheltered in one body-sadharna sariri) and (2) each bodied (every soul possesses its own body separately-pratyeka sariri). (93) पत्तेगसरीरा उ, गहा ते पकित्तिया । रुक्खा गुच्छा य गुम्मा य, लया वल्ली तणा जहा ॥९४॥ प्रत्येक शरीरी वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा-रुक्ख-वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बल्लरी-बेल (ककड़ी आदि की बेल) तथा तृण आदि-॥९४॥ Single bodied plant beings are said of several types, e.g., trees, shrubly pants, shrubs, big plants, tendrils, grass, etc.-(94) लयावलया पव्वगा कुहुणा, जलरुहा ओसही-तिणा । हरियकाया य बोद्धव्वा, पत्तेया इति आहिया ॥९॥ लतावलय, पर्वज-ईख आदि, कुहन-भूमिफोड़, जलरूहा-जल में उत्पन्न होने वाले, औषधि (गेहूँ, चना आदि धान्य) तृण-शालि आदि धान्य, हरितकाय आदि-ये सभी प्रत्येक शरीरी (वनस्पतिकायिक) हैं ॥९॥ Palm, plants of knotty stems or stalks-like sugarcane, mushrooms, water-plants, plants of wheat, gram etc., plants of rice etc., and green vegetables etc., -all these are single bodied vegetations. (95) साहारणसरीरा उ, णेगहा ते पकित्तिया । आलुए मूलए चेव, सिंगबेरे तहेव य ॥९६॥ साधारण शरीरी (वनस्पतिकायिक) भी अनेक प्रकार के कहे गये हैं-यथा-आलुए-आलूक (अथवा आलू), मूलए-मूलक (अथवा मूली), सिंगबेरे-अदरक-॥९६॥ Common bodied flora beings are also of several types, e. g., potato (aluka), redish (mülaka), ginger-(96) हिरिली सिरिली सिस्सिरिली, जावई केय-कन्दली । पलंडू-लसणकन्दे य, कन्दली य कुडुंबए ॥९७॥ हिरली-हिरलीकन्द सिरिली-सिरिलीकन्द, सिस्सिरिली-सिस्सिरिलीकन्द, जावई-जावईकन्द, केयकन्दलीकेदकन्दलीकन्द, पलण्डु-प्याज, लसणकन्द-लहसुन, कन्दली-कन्दली, कुडुम्बए-कुस्तुम्बक-॥९७।। Hirli-hiralikanda, sirili-sirilikanda, sissirili-sissirilikanda, jāvai-jāvaikanda, keyakandali-kedakandalikanda, onion (palandu) garlic (lasanakanda-lahasuna), plantain tree (kandali), kustumbaka-(97) लोहि णीहू व थिहू य, कुहगा य तहेव य । कण्हे य वज्जकन्दे य, कन्दे सूरणए तहा ॥९॥ लोहि-लोही, लोहिणी, लीहू-स्निहु, कुहक, कृष्णकन्द, वज्रकन्द और सूरणकन्द-||९८॥ Lohi-lohi-lohini, lihu-snihu, kuhaka, krsnakanda, vajrakanda and suranakanda-(98) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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