Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 609
________________ ५०३] षट्त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र अपकाय की प्ररूपणा दुविहा आउजीवा उ, सुहुमा बायरा तहा । पज्जत्तमपज्जत्ता, एवमेए दुहा पुणो ॥४॥ अप्कायिक जीव दो प्रकार के हैं-(१) सूक्ष्म और (२) बादर। पुनः इन दोनों प्रकारों के दो-दो भेद और होते हैं-(१) पर्याप्त और (२) अपर्याप्त ॥२४॥ Water-bodied living beings are of two kinds-(1) subtle and (2) gross. Again these both are sub-divided into (1) developed fully (paryapta) and (2) undeveloped (aparyapta). (84) बायरा जे उ पज्जत्ता, पंचहा ते पकित्तिया । सुद्धोदए य उस्से, हरतणू महिया हिमे ॥१५॥ जो पर्याप्त बादर अप्कायिक जीव हैं, वे पाँच प्रकार के बताये गये हैं, यथा-(१) शुद्धोदक-शुद्ध जल (२) उस्स-ओस (३) हरतणु-गीली (आर्द्र) भूमि से उत्पन्न वह पानी जो प्राप्तःकाल तृण के अग्रभाग पर बिन्दु के रूप में दृष्टिगोचर होता है (४) महिका-कुहासा, कोहरा और (५) हिम-बर्फ ॥८॥ ____Gross water-bodied beings are said of five types-(1) pure water (2) dew (3) exudations (4) fog and (5) ice. (85) एगविहमणाणत्ता, सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥८६॥ . नानात्व (अनेकता) से रहित सूक्ष्म अप्कायिक जीव एक ही प्रकार के हैं और वे समस्त लोक में व्याप्त (भरे हुए) हैं; लेकिन बादर अप्कायिक जीव लोक के एक देश (विभाग) में ही हैं ॥८६॥ Subtle water-bodied beings are only of one kind and filled in whole world (loka) and gross water-bodied beings are in a part of it. Now further I shall describe the fourfold divisions of water-bodied beings, with regard to time. (86) सन्तइं पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥२७॥ संतति-प्रवाह की अपेक्षा से अप्कायिक जीव अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा वे सादि-सान्त भी हैं ||७|| By continuous flow water-bodied beings have neither beginning, nor end; but considering individually they have beginning and end too. (87) सत्तेव सहस्साई, वासाणुक्कोसिया भवे । आउट्टिई आऊणं, अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ॥८॥ ___ उनकी (अप्कायिक जीवों की) उत्कृष्ट आयुस्थिति सात हजार वर्ष की और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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