Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 612
________________ an सचित्र उत्तराध्ययन सत्र षट्त्रिंश अध्ययन [५० अस्सकण्णी य बोद्धव्वा, सीहकण्णी तहेव य । मुसुण्ढी य हलिद्दा य, ऽणेगहा एवमायओ ॥९९॥ अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुंडी, हरिद्रा-हल्दी-इत्यादि अनेक प्रकार के साधारण शरीरी वनस्पतिका जाननी चाहिए ॥९९॥ ___ Asvakami, sinhakarmi, musundi, turmeric etc., thus various types of common-bodies flora beings should be known. (99) एगविहमणाणत्ता, सुहमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा ॥१00॥ नानात्व (अनेकता) से रहित एक ही प्रकार के सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव कहे गये हैं। वे समस्त लोक में व्याप्त हैं लेकिन बादर वनस्पतिकायिक जीव लोक के एक देश (अंश अथवा भाग) में ही हैं ॥१०॥ Subtle flora beings have no variations, they are of only one kind and filled in the whole universe (loka) but gross flora beings reside only in a part of universe (loka). (Now further I shall describe the fourfold division of these flora-bodied beings, with regard to time.) (100) संतई पप्पऽणाईया, अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥१०१॥ संतति प्रवाह की अपेक्षा से वनस्पतिकायिक जीव अनादि-अनन्त हैं किन्तु स्थिति की अपेक्षा से वे सादिसान्त भी हैं ।।१०१॥ With regard to continuity vegetable-bodied beings have neither beginning nor end but with regard to individual duration they have beginning and an end t00. (101) दस चेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिया भवे । वणप्फईण आउं तु, अन्तोमुहुत्तं जहन्नगं ॥१०२॥ इन (बादर वनस्पतिकायिक जीवों) की उत्कृष्ट आयुस्थिति दस हजार वर्ष की है और जघन्य आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त की है ॥१०२॥ Longest duration of folra-bodied beings is ten thousand years and shortest duration is of antarmuhurta only. (102) अणन्तकालमुक्कोसं, अन्तोमुत्तं जहन्नयं । __ कायठिई पणगाणं, तं कायं तु अमुंचओ ॥१०३॥ वे वनस्पतिकाय के जीव यदि उसी काय में जन्म-मरण करते हैं तो उनकी कायस्थिति उत्कृष्टतः अनन्त काल की और जघन्य कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त की होती है ।।१०३॥ The maximum body-duration of vegetable-bodied beings (continuous births and deaths in the same body) is of infinite time and minimum antarmuhurna only. (103) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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