Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 594
________________ Hin सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र षट्त्रिंश अध्ययन [४८८ धर्मास्तिकाय तथा उस (धर्मास्तिकाय) के देश और उस (धर्मास्तिकाय) के प्रदेश कहे गये हैं तथा इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, उस (अधर्मास्तिकाय) का देश और उस (धर्मास्तिकाय) का प्रदेश भी बताया गया है ॥५॥ (1) Dharmastikaya, (2) its divisions (3) its indivisible parts are told and in the same way (4) Adharmastikaya (5) its divisions and (6) its indivisible parts are also described. (5) आगासे तस्स देसे य, तप्पएसे य आहिए । अद्धासमए चेव, अरूवी दसहा भवे ॥६॥ आकाशास्तिकाय, उस (आकाशास्तिकाय) का देश और उस (आकाशास्तिकाय) का प्रदेश बताया गया है और अद्धासमय (काल)। इस तरह अरूपी अजीव दस प्रकार का है ॥६॥ Likewise (7) Ākāśāstikaya, (8) its divisions and (9) its indivisible parts are told; but the (10) time is one, it has no divisions and sub-divisions. Thus formless non-soul substances are of ten types. (6) धम्माधम्मे य दोऽवेए, लोगमित्ता वियाहिया । लोगालोगे य आगासे, समए समयखेत्तिए ॥७॥ धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय-ये दोनों ही लोकप्रमाण-सम्पूर्ण लोक में व्याप्त बताये गये हैं। आकाशास्तिकाय लोक और अलोक दोनों में व्याप्त है तथा समय (काल) समय-क्षेत्रिक-ढाई द्वीप प्रमाण मानव-क्षेत्र में है ||७|| Both the Dharmastikaya and adharmāstikaya are co-extensive to the world (loka). But Akāśāstikaya is spread in world and beyond (Loka and aloka) and time is spread upto human sphere, the place of time, two and half great islands. (7) धम्माधम्मागासा, तिन्नि वि एए अणाइया । अपज्जवसिया चेव, सव्वद्धं तु वियाहिया ॥८॥ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय-ये तीनों ही द्रव्य अनादि, अपर्यवसित (अनन्त) तथा सर्व काल स्थायी (नित्य) हैं ॥८॥ Dharmästikāya, Adharmāstikāya and Space (Ākāśa) all the three substances are beginningless, endless and eternal. (8) समए वि सन्तइं पप्प, एवमेवं वियाहिए । आएसं पप्प साईए, सपज्जवसिए वि य ॥९॥ समय (काल) भी संतति-प्रवाह की अपेक्षा से इसी प्रकार (अनादि, अनन्त, स्थायी-नित्य) कहा गया है किन्तु आदेश (प्रतिनियत) की अपेक्षा से वह आदि (आदि सहित) और अन्तसहित (सपज्जिए) भी होता है ॥९॥ Time is also called beginningless, endless and eternal with regard to its continuous flow but with regard to particularity it has a beginning and an end too. (9) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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