Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 567
________________ ४६३] चतुास्त्रश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र (३) रसद्वार जह कडुयतुम्बगरसो, निम्बरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ किण्हाए नायव्वो ॥१०॥ जिस प्रकार कड़वे तुम्बे का रस, नीम का रस, कड़वी रोहिणी (नीम गिलोय) का रस जितना कड़वा होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक कड़वा रस (स्वाद) कृष्ण लेश्या का जानना चाहिए ॥१०॥ The taste of black tinge is infinitely more bitter than that of bitter gourd (tumbaka) juice of (fruits and leaves) margossa tree and bitter rohiņi. (10) जह तिगड्यस्स य रसो, तिक्खो जह हरिथपिप्पलीए वा । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ नीलाए नायव्वो ॥११॥ जैसा त्रिकटुक (त्रिकुटा-सोंठ, पिप्पल, कालीमिर्च) का रस, गज पीपल का रस जितना तीखा (चरपरा) होता है उससे भी अनन्तगुणा तीखा रस (स्वाद) नील लेश्या का जानो ॥११॥ The taste of blue tinge is infinitely more pungent than that of trikațuka (aggregate of black round and long pepper and dry ginger). and hastipippala. (11) जह तरुणअम्बगरसो, तुवरकविठ्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ काऊए नायव्वो ॥१२॥ जैसे कच्चे आम का रस, कच्चे कपित्थ फल (कवीठ) का रस जितना कषैला होता है, उससे भी अनन्तगुणा कषायला रस (स्वाद) कापोत लेश्या का जानना चाहिए ॥१२॥ The taste of grey (kāpota) tinge is infinitely more sour than the juice of unripe mango and unripe fruit of kapittha. (12) जह परिणयम्बगरसो, पक्ककविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणन्तगुणो, रसो उ तेऊए नायव्वो ॥१३॥ जैसे पके हुए आम का रस, पके हुए कपित्थ का रस जितना खट-मीठा होता है उससे भी अनन्तगुणा खट-मीठा रस तेजोलेश्या का जानो ॥१३॥ The taste of red (tejas) tinge is infinitely more sour and sweet than the juice of ripe mango and kapittha fruit. (13) वरवारुणीए व रसो, विविहाण व आसवाण जारिसओ । महु-मेरगस्स व रसो, एत्तो पम्हाए परएणं ॥१४॥ उत्तम मदिरा का जैसा रस होता है तथा विविध प्रकार के आसवों का रस और मधु (विशेष प्रकार की मदिरा) सिरके, मैरेयक का रस (कुछ खट्टा कुछ कसैला) होता है उससे भी अनन्तगुणा ज्यादा कुछ खट्टा-कुछ कसैला रस पद्म लेश्या का होता है ॥१४॥ The taste of yellow (padma) tinge is infinitely more sour and astringent than that of wine, various types of liquors, vinegar and maireyaka. (14) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |

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