Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 572
________________ ती सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र चतुस्त्रिंश अध्ययन [४६६ - - आरम्भाओ अविरओ, खुद्दो साहस्सिओ नरो । एयजोगसमाउत्तो, नीललेसं तु परिणमे ॥२४॥ आरम्भ (हिंसा आदि) से अविरत है, क्षुद्र है, दुःसाहसी है-इन योगों (लक्षणों) से युक्त मनुष्य नीललेश्या में परिणत होता है (नील लेश्या के परिणाम वाला होता है) ॥२४॥ Not disinclined to violence, wicked or niggardly, arrogant or rash-the person having these qualities is possessed by blue tinge. (24) वंके वंकसमायारे, नियडिल्ले अणुज्जुए । पलिउंचग ओवहिए, मिच्छदिट्ठी अणारिए ॥२५॥ जो मनुष्य वक्र है (मन-वचन से वक्र है), वक्रता का आचरण करता है, कुटिल-कपटी है, सरल नहीं है, प्रतिकुंचक (अपने दोषों को छिपाने वाला) है, औपधिक (छल-छद्म का प्रयोग करने वाला) है, मिथ्यादृष्टि है, अनार्य है-॥२५॥ ___A man, who is crooked (dishonest in mind and words), acts of crookedness, deceitful, not upright, guiser of his own faults, dissembler and deceiver, of wrong belief, innoble-(25) उफ्फालग-दुट्ठवाई य, तेणे यावि य मच्छरी । एयजोगसमाउत्तो, काउलेसं तु परिणमे ॥२६॥ उत्प्रासक (अश्लील मजाक करने वाला) है, दुष्ट वचन बोलने वाला है, चोर है और मत्सर (डाह करने वाला) है-इन योगों (लक्षण) से युक्त जीव कापोत लेश्या में परिणत होता है ॥२६॥ Pantagruelist, speaks ill-words, thief and jealous-the person having these habits is possessed by by grey (kāpota) tinge. (26) नीयावित्ती अचवले, अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दन्ते, जोगवं उवहाणवं ॥२७॥ जिसकी वृत्ति नम्र है, जो अचपल है, माया (कपट) से रहित है, कौतूहल नहीं करता है, विनय में विनीत है, दान्त (अपनी इन्द्रियों का दमन करने वाला) है, योगवान-उपधानवान (स्वाध्याय से समाधि सम्पन्न और विहित तप करने वाला) है-॥२७॥ A person, who is modest, steadfast, free from deceit and inquisitiveness, well disciplined in humility, subduer of his own senses, opulent with study contemplation and observes prescribed penances (yogavana-upadhānavana)-(27) पियधम्मे दढधम्मे, वज्जभीरू हिएसए । एयजोगसमाउत्तो, तेउलेसं तु परिणमे ॥२८॥ प्रियधर्मी है, दृढ़धर्मी है, पापभीरु है, हितैषी (आत्मार्थी) है-इन योगों (लक्षणों) से युक्त मानव तेजो लेश्या में परिणत होता है (परिणमन करता है) ॥२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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