Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 571
________________ ४६५] चतुस्त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र in (६) परिणामद्वार तिविहो व नवविहो वा, सत्तावीसइविहेक्कसीओ वा । दुसओ तेयालो वा, लेसाणं होइ परिणामो ॥२०॥ तीन (३) प्रकार का, नौ (९) प्रकार का, सत्ताईस (२७) प्रकार का, इक्यासी (८१) प्रकार का, दो सौ तेतालीस (२४३) प्रकार का लेश्याओं का परिणाम होता है ॥२०॥ The pariņāma or degrees of tinges is of three, nine, twentyseven, eightyone and two hundred fortythree types. (20) (७) लक्षणद्वार पंचासवप्पवत्तो, तीहिं अगुत्तो छसुंअविरओ य । तिव्वारम्भपरिणओ, खुद्दो साहसिओ नरो ॥२१॥ जो मानव पाँच प्रकार के आसवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों से अगुप्त है (मन-वचन-काय का गोपन नहीं करता), छह काया के जीवों (की हिंसा) से अविरत है, तीव्र आरम्भ (हिंसा आदि) में परिणतरचा-पचा है, क्षुद्र है, साहसिक (दुःसाहसी-बुरे कामों को करने में निडर) है-॥२१॥ A man, who is engaged'in five kinds of inflow of karmas, not latent by three incognitoes (does not cease the activities of mind, speech and body), not disinclined to injure the six species, indulged in intense violence, fearless to do sinful deeds-(21) निद्धन्धसपरिणामो, निस्संसो अजिइन्दिओ । एयजोगसमाउत्तो, किण्हलेसं तु परिणमे ॥२२॥ निःशंक परिणाम (परिणाम-फल के विचार से शून्य) वाला है, नृशंस (क्रूर) है, अजितेन्द्रिय (इन्द्रियों को अपने वश में न रखने वाला)-जो इन योगों (लक्षणों) से युक्त है वह कृष्ण लेश्या में परिणत होता है (वह कृष्ण लेश्या वाला कहलाता है) ॥२२॥ __Doubtless (does not consider) about the ill-consequences, cruel, does not subdue his senses-having these symptoms-habits, qualities, such person is called possessing black tinge. (22) इस्सा-अमरिस-अतवो, अविज्ज-माया अहीरिया य । गेद्धी पओसे य सढे, पमत्ते रसलोलुए सायगवेसए य ॥२३॥ जो ईर्ष्या करने वाला है, अमर्ष (हठाग्रही-कदाग्रही-असहिष्णु) है, अतपस्वी (अथवा अनुशासनहीन) है, अविधायुक्त (अज्ञानी अथवा मिथ्यात्वी) है, मायावी है, निर्लज्ज है, विषयों में गृद्ध है, प्रद्वेषी है, प्रमादी (असावधान, आलसी) है, शठ अथवा धूर्त है, रस का लोलुपी है, सुख का गवेषक (सिर्फ अपनी ही सुख-सुविधा का अभिलाषी) है-॥२३॥ A man, who is envious, haughty-evil conducted-untolerant, indisciplined, ignorant or having false faith, deceitful, shameless, indulged in sensual pleasures, full of hate, careless and lazy, stupid or fraudulent, lustful of tastes, desirous of only his own comforts and luxuries-(23) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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