Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 555
________________ ४५१] त्रयस्त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र निद्दा तहेव पयला, निहानिद्दा य पयलपयला य । तत्तो य थीणगिद्धी उ, पंचमा होइ नायव्वा ॥५॥ चक्खुमचक्खु-ओहिस्स, दंसणे केवले य आवरणे । एवं तु नवविगप्पं, नायव्वं दंसणावरणं ॥६॥ (१) निद्रा, तथा (२) प्रचला, (३) निद्रा-निद्रा और (४) प्रचला-प्रचला तथा पाँचवीं स्त्यानगृद्धि (स्त्यानद्धि)-||५|| (६) चक्षुदर्शनावरणीय (७) अचक्षुदर्शनावरणीय (८) अवधिदर्शनावरणीय और (९) केवलदर्शनावरणीयये ९ विकल्प (भेद) दर्शनावरणीय कर्म के जानने चाहिए ॥६॥ Perception obstructing karma is ninefold viz.,-(1) Common or light sleep (2) sleep, when sitting (3) deep sleep (4) sleep even when walking (5) styangrddhi-a high degree of activity in sleep. (5) Obstructer of perception viz.,-(6) by eye (7) by other senses except eye, (8) clairvoyance (9) suprene perception. (6) वेयणीयं पि य दुविहं, सायमसायं च आहियं । सायस्स उ बहू भेया, एमेव असायस्स वि ॥७॥ वेदनीयकर्म दो प्रकार का है-(१) सात (साता) वेदनीय और (२) असात-असातावेदनीय। सातवेदनीय के बहुत भेद हैं और इसी प्रकार असातवेदनीय के भी बहुत भेद हैं |॥७॥ Emotion evoking karma is of two kinds-(1) pleasure experience (2) pain experience. There are many types of pleasure experiences so there are of pain experiences too. (7) मोहणिज्जं पि दुविहं, दंसणे चरणे तहा। दसणं तिविहं वुत्तं, चरणे दुविहं भवे ॥६॥ मोहनीय कर्म भी दो प्रकार का है-(१) दर्शनमोहनीय और (२) चारित्रमोहनीय। दर्शनमोहनीय के तीन भेद कहे गये हैं और चारित्रमोहनीय दो प्रकार का होता है ||८|| Illusory karma is twofold-(1) Faith Illusory and (2) Conduct Illusory. Faith Illusory is sub-divided into three kinds and Conduct Illusory into two kinds. (8) सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य । एयाओ तिन्नि पयडीओ, मोहणिज्जस्स दंसणे ॥९॥ (१) सम्यक्त्व (२) मिथ्यात्व (३) सम्यक्त्व निथ्यात्व-ये तीन प्रकृतियाँ दर्शनमोहनीय कर्म की हैं ॥९॥ (1) Right faith (2) wrong faith and (3) rightwrong faith mixed-these are sub-divisions (uttara prakrtis) of Faith Illusory karma. (9) चरित्तमोहणं कम्म, दुविहं तु वियाहियं । कसायमोहणिज्जं तु, नोकसायं तहेव य ॥१०॥ चारित्रमोहनीय कर्म के दो भेद कहे गये हैं-(१) कषायमोहनीय और दूसरा (२) नोकषायमोहनीय ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jairelibary.org

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