Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 480
________________ त सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र एकोनत्रिंश अध्ययन [३७८ - (उत्तर) मनोगुप्ति से जीव एकाग्रता प्राप्त करता है। एकाग्रचित्त वाला जीव अशुभ विकल्पों से मन की रक्षा करता हुआ संयम का आराधक होता है। Maxim 54. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by restraint or incognito of mind ? (A). By restraint of mind, the soul obtains concentration (of mind). Concentrated soul protecting his mind from inauspicious thoughts, propiliates the restrain. सूत्र ५५-वयगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? वयगुत्तयाए णं निव्वियारं जणयइ । निव्वियारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगज्झाणगुत्ते यावि भवइ ॥ सूत्र ५५-(प्रश्न) भगवन् ! वचनगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) वचनगुप्ति से जीव निर्विकार (अथवा निर्विचार) भाव को प्राप्त करता है। निर्विकार (अथवा निर्विचार) जीव वचन से गुप्त (मौन) रहकर अध्यात्म योग के साधनभूत ध्यान से भी युक्त हो जाता है। Maxim 55. (Q). Bhagawan ! What does the soul attain by restraint of speech? (A). By restraint of speech the soul attains the state of immutability (thoughtlessness). Such soul becoming silent by words enables himself to the meditation which is the cause of spiritual yoga. सूत्र ५६-कायगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कायगुत्तयाए णं संवरं जणयइ । संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ ॥ सूत्र ५६-(प्रश्न) भगवन् ! कायगुप्ति से जीव क्या प्राप्त करता है? (उत्तर) कायगुप्ति से जीव आनवनिरोधरूप संवर को प्राप्त करता है। संवर के द्वारा काय-गुप्त साधक फिर से होने वाले (पुणो) पापानव का निरोध कर देता है। ___Maxim 56. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by body-restraint ? (A). By body-restraint, the soul stops the inflow of karmas. Thereby the practiser of body-restraint stops the inflow of sinful karmas. सूत्र ५७-मणसमाहारणयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मणसमाहारणयाए णं एगग्गं जणयइ । एगग्गं जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ । नाणपज्जवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ, मिच्छत्तं च निज्जरेइ ॥ सूत्र ५७-(प्रश्न) भगवन् ! मन की समाधारणता से जीव को क्या प्राप्त होता है? (उत्तर) मनःसमाधारणता (मन को आगमोक्त विधि के अनुसार समाधि में अथवा आगम-भावों के चिन्तन-मनन में संलग्न रखना) से जीव एकग्रता को प्राप्त करता है। एकाग्रता को प्राप्त करके ज्ञानपर्यवोंज्ञान के विविध तत्त्वबोध प्रकारों को प्राप्त करता है। ज्ञान पर्यवों को प्राप्त करके सम्यक्त्व को वि करता है और मिथ्यात्व की निर्जरा करता है। Maxim 57. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by mind-discipline ? (A). By mind-discipline (to align the soul in contemplation or pondering over the words and their meanings of sacred texts), the soul attains concentration. Concentrated soul Jain Educh ! International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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