Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 487
________________ ३८५] एकोनत्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र , - - period of time). It binds in first moment, experienced in the second and in the third moment it exhausts. This type of karma enjoined, touched, arose, experienced, exhausted; and then in the further moment tum to nokarma i.e., it becomes akarma. सूत्र ७३-अहाउयं पालइत्ता अन्तो-मुहुत्तद्धावसेसाउए जोगनिरोहं करेमाणे सुहुमकिरियं अप्पडिवाइ सुक्कन्झाणं झायमाणे, तप्पढमयाए मणजोगं निरुम्भइ, मणजोगं निरुम्भइत्ता वइजोगं निरुम्भइ, वइजोगं निरुम्भइत्ता कायजोगं निरुम्भइ, कायजोगं निरुम्भित्ता आणापाणुनिरोहं करेइ, आणापाणुनिरोहं करेइत्ता ईसि पंचरहस्सक्खरुच्चारद्धाए य णं अणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुक्कज्झाणं झियायमाणे वेयणिज्जं, आउयं, नाम, गोत्तं च एए चत्तारि वि कम्मसे जुगवं खवेइ ॥ सूत्र ७३-केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद शेष आयु को भोगता हुआ (कवली अनगार) जब अन्तर्मुहूर्त आयु शेष रहती है तब वह योगों का निरोध करता है। तब सूक्ष्म-क्रिय-अप्रतिपाती नाम के शुक्लध्यान के तृतीय भेद को ध्याता हुआ प्रथम मनोयोग का निरोध करता है। मनोयोग का निरोध करके वचन योग का निरोध करता है। वचन योग का निरोध करके काययोग का निरोध करता है। काययोग का निरोध करके आनापान (आण-प्राण-श्वासोच्छ्वास) का निरोध करता है। आनापान का निरोध करके पंच ह्रस्व अक्षरों (अ, इ, उ, ऋ, ल) के मध्यम गति से उच्चारण काल तक वह अनगार (कवली) शुक्लध्यान के चतुर्थ भेद समुच्छिन्न क्रिय-अनिवृत्ति को ध्याता हुआ वेदनीय, आयु, नाम, गोत्र-इन चार कर्मांशों का एक ही साथ क्षय कर देता है। Maxim 73. After becoming omniscient, the monk begins the process of obstructing activities of mind-speech-body when his life-duration remains less than 48 minutes (antarmuhurta) period of time. Then he controls activities of mind meditating the third division of white-purest meditation-named non-relapsed subtle activity (suksma-kriyaapratipāti). Stopping mental activity obstructs vocal activity. Obstructing vocal activity checks up bodily activity. Checking up bodily activity stops respiration-exhaling and inhaling breathes. Stopping respiration that omniscient (monk) meditates fourth division of purest meditation named samucchinna-kriya-aniyrtti till the time the five small vowels-37, इ, उ, ऋ, लृ can be vocated with medium speed. During this period he simultaneously exhausts the remnants of emotion-evoking, age determining, form determining and family or lineage determining karmas. सूत्र ७४-तओ ओरालियकम्माइं च सव्वाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहित्ता उज्जुसेढिपत्ते, अफुसमाणगई, उड़ एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गन्ता, सागारोवउत्ते सिन्झइ, बुज्झइ, मुच्चइ, परिनिव्वाएइ, सव्वदुक्खाणमन्तं करेइ ॥ एस खलु सम्मत्तपरक्कमस्स अज्झयणस्स अट्टे समणेणं भगवया महावीरेणं आघविए, पन्नविए, परूविए, दंसिए, उवदंसिए ॥ -त्ति बेमि । सूत्र ७४-तब (तओ) वह औदारिक (तैजस शरीर भी) और कार्मण शरीर को सर्व प्रकार से-सदा के लिए सर्वथा छोड़कर ऋजुश्रेणी को प्राप्त हुआ अस्पृशद् रूप, ऊर्ध्व, अविग्रह (बिना मोड़वाली) गति (गमन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.j-heirary.org

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