Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 493
________________ ३९१] त्रिंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र तीसइमं अज्झयणं : तवमग्गगई त्रिंश अध्ययन : तपो-मार्ग-गति जहा उ पावगं कम्मं, राग-दोससमज्जियं । खवेइ तवसा भिक्खू, तमेगग्गमणो सुण ॥१॥ राग और द्वेष से अर्जित पाप कर्मों का भिक्षु जिस प्रकार क्षय करता है, उसे (उस प्रक्रिया को) एकाग्रचित्त होकर सुनो ॥१॥ Listen the process by which a mendicant destructs the karmas, he has acquired by attachment and detachment. (1) पाणवह-मुसावाया, अदत्त-मेहुण-परिग्गहा विरओ। . राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अणासवो ॥२॥ प्राणि-वध (हिंसा), मृषावाद (असत्व), अदत्त (अदत्तादान-स्तेय), मैथुन (अब्रह्मचर्य), परिग्रह और रात्रि भोजन की विरति से जीव अनानव (आनव रहित) होता है ॥२॥ By abstaining from (1) violence (2) falsehood (3) stealing (4) non-celibacy (5) nonpossessing anythihing and eating-drinking any thing in night; the soul becomes free from inflow of karmas. (2) पंचसमिओ तिगुत्तो, अकसाओ जिइन्दिओ । अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो ॥३॥ पाँच समितियों से समित और तीन गुप्तियों से गुप्त, कषाय रहित, जितेन्द्रिय, गौरव-गर्व से रहित और निःशल्य जीव अनासव (आनवरहित) होता है ॥३॥ Circumspect by five circumspections, latent by three incognitoes, passionless, subduer of senses, prideless and free from internal thoms; such soul becomes free from in-flow of karmas. (3) एएसिं तु विवच्चासे, राग-द्दोससमज्जियं । जहा खवयइ भिक्खू, तं मे एगमणो सुण ॥४॥ पूर्वोक्त गुणों (धर्म साधना) से विपर्यास (विपरीत आचरण करने) पर रागद्वेष से अर्जित कर्मों को भिक्षु | जिस प्रकार क्षय करता है वह एकाग्रचित्त होकर मुझसे सुनो ॥४॥ Hear attentively with concentrated mind how a mendicant destroys the karmas acquired by attachment and detachment and practising contrary to above mentioned virtues. (4) जहा महातलायस्स, सनिरुद्ध जलागमे । उस्सिचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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