Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 474
________________ सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र (उत्तर) सम्भोग ( परस्पर सहभोजन - मण्डली भोजन आदि सम्पर्क) प्रत्याख्यान (त्याग) से जीव परावलम्बन को समाप्त करके निरावलम्बन (स्वावलम्बन) को प्राप्त करता है। निरावलम्बन (स्वावलम्बी होने से उसके सम्पूर्ण योग ( मन-वचन-काया के योग - प्रयत्न) आत्मस्थित आयतार्थ (मोक्षार्थ) हो जाते हैं। वह स्वयं के ( अपने ) लाभ से संतुष्ट रहता है, दूसरे के लाभ का आस्वादन ( उपभोग ) नहीं करता, तकता ( कल्पना भी नहीं, उसकी स्पृहा (इच्छा) भी नहीं करता, प्रार्थना ( याचना ) भी नहीं करता, अभिलाषा भी नहीं करता। दूसरों के लाभ का आस्वादन, कल्पना, स्पृहा, प्रार्थना तथा अभिलाषा न करता हुआ साधक दूसरी सुख शैया को प्राप्त करके विचरण करता है। Maxim 34. (Q). Bhagawan ! What does the soul obtain by renunciation of coenjoyments? (A). By renunciation of co-enjoyments (the contact of common meals, company-meals etc.,) the soul ending interdependence obtains independence. Being independent all his efforts (of mind, speech, body) are directed to attain salvation. He remains contented by what he gets, does not even wish, expect, beg and desire to share what other (sages) have, and thus he wanders attaining second happy lodge. सूत्र ३५ - उवहिपच्चक्खाणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? उवहिपच्चक्खाणेणं अपलिमन्थं जणयइ । निरुवहिए णं जीवे निक्कंखे, उवहिमन्तरेण य न किलिसई । सूत्र ३५ - ( प्रश्न) भगवन् ! उपधि (उपकरणों) के प्रत्याख्यान से जीव क्या प्राप्त करता है ? (उत्तर) उपधि के प्रत्याख्यान से जीव अपरिमन्थ - स्वाध्याय - ध्यान में निर्विघ्नता प्राप्त करता है। उपधिरहित जीव आकांक्षा से मुक्त होकर उपधि के अभाव में संक्लेश नहीं पाता है । Maxim 35. (Q). Bhagawan ! What does the soul get renouncing the articles of use ? (A). By renouncing the articles of use the soul acquires unobstructedness in study and meditation. Thereby, being exempt of desire does not feel himself miserable for want of articles of use. एकोनत्रिंश अध्ययन [ ३७२ सूत्र ३६ - आहारपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? आहारपच्चक्खाणं जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दइ । जीवियासंसप्पओगं वोच्छिन्दित्ता जीवे आहारमन्तरेणं न संकिलिस्सइ ॥ सूत्र ३६ - ( प्रश्न) भगवन् ! आहार के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? (उत्तर) आहार के प्रत्याख्यान से जीव जीवित रहने की लालसा को विच्छिन्न कर देता है। जीवन की आशंसा (कामना) को तोड़ देने से वह आहार के अभाव में संक्लेशित नहीं होता। Maxim 36. (Q). Bhagawan ! What does the soul acquire by giving up food ? (A). By giving up food the soul cuts off the lust of life. Breaking up the covetuousness of life, he does not feel miserable for want of food. Jain Education International सूत्र ३७ - कसायपच्चक्खाणेणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कसायपच्चक्खाणेणं वीयरागभावं जणयइ । वीयरागभावपडिवन्ने वि य णं जीवे समसुहदुक्खे भवइ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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