Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 375
________________ २७९] द्वाविंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र Fie upon you, you desirous of disfame! you wish to enjoy the vomitted pleasures. It would be better for you to die. (43) अहं च भोयरायस्स, तं च सि अन्धगवण्हिणो । मा कुले गन्धणा होमो, संजमं निहुओ चर ॥४४॥ मैं भोजराज (भोजवृष्णि) की पौत्री हूँ और तू अन्धकवृष्णि का पौत्र है। कुल में गन्धन सर्प के समान मत हो । स्थिर होकर संयम का आचरण कर ॥४४॥ I am grand daughter of Bhojagavṛṣṇi and you are grandson of Andhakavṛṣṇi. Do not be like a gandhana serpent (who sucks the vomitted poison from the wound) in your high family, remain steady in restrain. (44) जइ तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारिओ । वायाविद्धो व्व हो, अट्ठिअप्पा भविस्ससि ॥४५॥ यदि तू जिन-जिन स्त्रियों को देखेगा और उन-उन के प्रति इसी प्रकार से रागभाव करेगा तो प्रेरित हड़ वनस्पति के समान अस्थिर आत्मा हो जायेगा ||४५ ॥ वायु से If you will be tempted to the women you see then you will be an unsteady soul like hada vegetable inspired by wind. (45) गोवालो भण्डवालो वा जहा तद्दव्वऽणिस्सरो । एवं अणिस्स तं पि, सामण्णस्स भविस्ससि ॥ ४६ ॥ जिस प्रकार गोपाल और भाण्डपाल उन गायों तथा किराने के सामान के स्वामी नहीं होते उसी प्रकार तू भी श्रामण्यभाव का स्वामी नहीं हो सकेगा ॥ ४६ ॥ As herdmen and keepers of goods are not the owners of those. In the same way, you could not truly own sagehood. (46) कोहं माणं निगिहित्ता, मायं लोभं च सव्वसो । इन्दियाई वसे काउं, अप्पाणं उवसंहरे ॥४७॥ तू क्रोध, मान, माया, लोभ- इन कषायों को पूर्णरूप से निग्रह करके, तथा इन्द्रियों को वश में करके अपनी आत्मा को असंयम से हटाकर संयम में स्थिर ( उवसंहरे) उपसंहार कर ॥४७॥ Obstructing all the four passions - Anger, pride, deceit, greed and subduing the senses, remove your soul from unrestrainment, be steady in restrain. (47) तीसे सो वयणं सोच्चा, संजयाए सुभासियं । अंकुसेण जहा नागो, धम्मे संपडिवाइओ ॥ ४८ ॥ उस संयता राजीमती के सुभाषित वचनों को सुनकर रथनेमि सम्यक् प्रकार से धर्म में उसी तरह स्थिर गया जिस तरह हाथी अंकुश से वश में हो जाता है ॥ ४८ ॥ Having heard these well-said words of restrained Räjimati Rathanemi became steady in religion (restrainment) as elephant, subjugated by hook. (48) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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