Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Atmagyan Pith

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Page 419
________________ ३१९] पंचविंश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र तुब्भे जइया जन्नाणं, दुब्भे वेयविऊ विऊ । जोइसंगविऊ तुब्भे, तुब्भे धम्माण पारगा ॥३८॥ (विजयघोष ब्राह्मण) आप यज्ञों के यष्टा-यज्ञकर्ता हो, वेदों के ज्ञाता विद्वान हो, आप ही ज्योतिष के अंगों के जानकार और धर्मों के पारगामी हो ॥३८॥ (Vijayaghoșa) You are a real sacrificer of sacrifices, most learned of Vedas and astronomy as described in Vedas and well versed in religions. (38) तुब्भे समत्था उद्धत्तुं, परं अप्पाणमेव य । तमणुग्गहं करेहऽम्हं, भिक्खेण भिक्खु उत्तमा ॥३९॥ आप ही अपने और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हो। इसलिए हे उत्तम भिक्षु ! भिक्षा स्वीकार करके हम पर अनुग्रह करो ॥३९॥ Only you are capable to save yourself and others. So O mendicant ! Be kind enough to accept alms. (39) न कज्ज मज्झ भिक्खेण, खिप्पं निक्खमसू दिया । मा भमिहिसि भयावट्टे, घोरे संसारसागरे ॥४०॥ (जयघोष मुनि) मुझे भिक्षा से कोई कार्य (प्रयोजन) नहीं है। लेकिन हे द्विज ! तुम शीघ्र ही अभिनिष्क्रमण करो यानी श्रमण दीक्षा स्वीकार करो; जिससे कि तुम्हें भव के आवौं वाले इस घोर संसार सागर में भ्रमण न करना पड़े ॥४॥ (Jayaghosa sage) I have no purpose of alms. But you soon accept Jain consecration so that you many not drift on the dreadful ocean of world, whose eddies are dangers. (40) उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे, अभोगी विप्पमुच्चई ॥४१॥ भोगों से कर्मों का उपलेप होता है, अभोगी कर्मों से लिप्त नहीं होता। भोगी संसार में भ्रमण करता है, अभोगी उससे मुक्त हो जाता है ॥४१॥ The worldly life gives a coat of karmas, but who keeps apart is not soiled. The enjoyer glides back and forth, but the renouncer cuts asunder the cycle of births and deaths. (41) उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया । दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सो तत्थ लग्गई ॥४२॥ गीले और सूखे मिट्टी के दो गोले फैंके गये। वे दोनों ही दीवार पर गिरे। गीला गोला वहीं (दीवार पर) चिपक गया ॥४२॥ Wet and dry two clods thrown on a wall. They hit the wall. The wet clod stick with the wall. (42) एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा कामलालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा सुक्को उ गोलओ ॥४३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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